सुबह की सुबह Poetry (page 34)
अब कौन सी मता-ए-सफ़र दिल के पास है
अज़ीज़ तमन्नाई
अब कौन सी मता-ए-सफ़र दिल के पास है
अज़ीज़ तमन्नाई
रसूल-ए-काज़िब
अज़ीज़ क़ैसी
अल्फ़-ए-लैला की आख़िरी सुब्ह
अज़ीज़ क़ैसी
सुब्ह-सवेरे ख़ुशबू पनघट जाएगी
अज़ीज़ नबील
मैं नींद के ऐवान में हैरान था कल शब
अज़ीज़ नबील
आएँगे नज़र सुब्ह के आसार में हम लोग
अज़ीज़ नबील
आतिश-ए-ख़ामोश
अज़ीज़ लखनवी
वो निगाहें क्या कहूँ क्यूँ कर रग-ए-जाँ हो गईं
अज़ीज़ लखनवी
देख कर हर दर-ओ-दीवार को हैराँ होना
अज़ीज़ लखनवी
शोख़ी से कश्मकश नहीं अच्छी हिजाब की
अज़ीज़ हैदराबादी
जफ़ा देखनी थी सितम देखना था
अज़ीज़ हैदराबादी
ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब
अज़ीज़ हामिद मदनी
ये फ़ज़ा-ए-साज़-ओ-मुज़रिब ये हुजूम-ताज-ए-दाराँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
वो एक रौ जो लब-ए-नुक्ता-चीं में होती है
अज़ीज़ हामिद मदनी
नक़्शे उसी के दिल में हैं अब तक खिंचे हुए
अज़ीज़ हामिद मदनी
ख़त्म हुई शब-ए-वफ़ा ख़्वाब के सिलसिले गए
अज़ीज़ हामिद मदनी
हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को
अज़ीज़ हामिद मदनी
ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले
अज़ीज़ हामिद मदनी
तू भी वफ़ा के रूप में अब ढल के देख ले
अज़हर जावेद
वो मुझ से मेरा तआ'रुफ़ कराने आया था
अज़हर इनायती
तेरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है
अज़ीम मुर्तज़ा
तिरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है
अज़ीम मुर्तज़ा
ख़ुद हमीं को राहतों के कैफ़ का चसका न था
आज़ाद गुलाटी
मोहब्बत का एक साल
अय्यूब ख़ावर
बुझने लगे नज़र तो फिर उस पार देखना
अय्यूब ख़ावर
दीवानगी ने ख़ूब करिश्मे दिखाए हैं
अयाज़ झाँसवी
ख़ुश बहुत आते हैं मुझ को रास्ते दुश्वार से
औरंगज़ेब
आख़िर बिगड़ गए मिरे सब काम होने तक
औरंगज़ेब
ख़दशे थे शाम-ए-हिज्र के सुब्ह-ए-ख़ुशी के साथ
औलाद अली रिज़वी
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