सुबह की सुबह Poetry (page 33)
इक हुस्न-ए-बे-मिसाल के जो रू-ब-रू हूँ मैं
बशीर सैफ़ी
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
बशीर बद्र
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
बशीर बद्र
पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में
बशीर बद्र
नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह
बशीर बद्र
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
बशीर बद्र
दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में
बशीर बद्र
शाम ढलते ही ये आलम है तो क्या जाने बशीर
बशीर अहमद बशीर
जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें
बशीर अहमद बशीर
क्या क्या लोग ख़ुशी से अपनी बिकने पर तय्यार हुए
बशर नवाज़
जब अयाँ सुब्ह को वो नूर-ए-मुजस्सम हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ये रुख़-ए-यार नहीं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के तले
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
जो तुम और सुब्ह और गुलनार-ए-ख़ंदाँ हो के मिल बैठे
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
जहन्नम
बाक़र मेहदी
इश्क़ की सारी बातें ऐ दिल पागल-पन की बातें हैं
बाक़र मेहदी
एक पुर-असरार सदा
बलराज कोमल
बात बिगड़ी हुई बनी सी रही
बकुल देव
रुख़-ए-हयात है शर्मिंदा-ए-जमाल बहुत
बख़्श लाइलपूरी
कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है
बहराम जी
वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले
ज़फ़र
करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे
ज़फ़र
कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
भागते सूरज को पीछे छोड़ कर जाएँगे हम
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
तुम को मैं जब सलाम करता हूँ
बाबर रहमान शाह
ख़्वाब-जंगल
अज़रा नक़वी
ए'तिराफ़
अज़रा अब्बास
तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम
अज़्म शाकरी
उस आँख से वहशत की तासीर उठा लाया
अज़्म बहज़ाद
मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए
अज़्म बहज़ाद
बहुत क़रीने की ज़िंदगी थी अजब क़यामत में आ बसा हूँ
अज़्म बहज़ाद
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