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Collection: सुबह की सुबह Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 28 - Darsaal

सुबह की सुबह Poetry (page 28)

बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की

फ़िराक़ गोरखपुरी

आँखों में जो बात हो गई है

फ़िराक़ गोरखपुरी

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

किसी अपने से होती है न बेगाने से होती है

फ़िगार उन्नावी

चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं

फ़िगार उन्नावी

ये दौर कैसा है या-इलाही कि दोस्त दुश्मन से कम नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

कोहसारों में नहीं है कि बयाबाँ में नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

वही रिवायत गज़ीदा-दानिश वही हिकायत किताब वाली

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

जबीं पे गर्द है चेहरा ख़राश में डूबा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

घर की मुश्किल कोई हल चाहती है

फ़े सीन एजाज़

उस की दीवार पे मनक़ूश है वो हर्फ़-ए-वफ़ा

फ़सीह अकमल

अयाज़ चुप है

फर्रुख यार

ग़म की चादर ओढ़ कर सोए थे क्या

फ़ारूक़ नाज़की

मगर इन आँखों में किस सुब्ह के हवाले थे

फ़ारूक़ मुज़्तर

तुम्हारे क़स्र-आज़ादी के मेमारों ने क्या पाया

फ़ारूक़ बाँसपारी

कभी बे-नियाज़-ए-मख़्ज़न कभी दुश्मन-ए-किनारा

फ़ारूक़ बाँसपारी

कोई धड़कन कोई उलझन कोई बंधन माँगे

फ़रहत क़ादरी

वस्ल के लम्हे कहानी हो गए

फ़रहत कानपुरी

तुझे ख़बर हो तो बोल ऐ मिरे सितारा-ए-शब

फ़रहत एहसास

रक़्स-ए-इल्हाम कर रहा हूँ

फ़रहत एहसास

किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया

फ़रहत एहसास

किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया

फ़रहत एहसास

कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते

फ़रहत एहसास

जिस्म जब महव-ए-सुख़न हों शब-ए-ख़ामोशी से

फ़रहत एहसास

हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है

फ़रहत एहसास

उदास शाम में पज़मुर्दा बाद बन के न आ

फ़रहान सालिम

मता-ए-दर्द मआल-ए-हयात है शायद

फ़रहान सालिम

मक्र-ए-हयात रुख़ की क़बा भी उतार दी

फ़रहान सालिम

ये कहाँ से मौज-ए-तरब उठी कि मलाल दिल से निकल गए

फ़रीद जावेद

ये कहाँ से मौज-ए-तरब उठी कि मलाल दिल से निकल गए

फ़रीद जावेद

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