सुबह की सुबह Poetry (page 15)
कैमरा
साक़ी फ़ारुक़ी
वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे
साक़ी फ़ारुक़ी
इक याद की मौजूदगी सह भी नहीं सकते
साक़ी फ़ारुक़ी
शबीह-ए-रूह कुछ ऐसे निखार दी गई है
संजय मिश्रा शौक़
वो गुम हुए हैं मुसाफ़िर रह-ए-तमन्ना में
समद अंसारी
वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई
समद अंसारी
उतरे तिलिस्म शब के उजालों पे रात-भर
समद अंसारी
तमाम उम्र की तन्हाइयों पे भारी थी
सलीम शुजाअ अंसारी
जब से उन की मेहरबानी हो गई
सलीम रज़ा रीवा
रहा वो शहर में जब तक बड़ा दबंग रहा
सलीम शहज़ाद
सूरज ज़मीं की कोख से बाहर भी आएगा
सलीम शाहिद
क़ाइल करूँ किस बात से मैं तुझ को सितमगर
सलीम शाहिद
ख़्वाहिश को अपने दर्द के अंदर समेट ले
सलीम शाहिद
बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर
सलीम शाहिद
जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह न मिल सकी
सलीम कौसर
साल की आख़िरी शब
सलीम कौसर
पुराने साहिलों पर नया गीत
सलीम कौसर
वो जो हम-रही का ग़ुरूर था वो सवाद-ए-राह में जल-बुझा
सलीम कौसर
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सलीम कौसर
किस की तहवील में थे किस के हवाले हुए लोग
सलीम कौसर
ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने
सलीम कौसर
ऐ शब-ए-हिज्र अब मुझे सुब्ह-ए-विसाल चाहिए
सलीम कौसर
उम्र भर काविश-ए-इज़हार ने सोने न दिया
सलीम अहमद
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
सलीम अहमद
मुझ को दुश्वार हुआ जिस का नज़ारा तन्हा
सलीम अहमद
हुई सुब्ह जाम खनक उठे हुई शाम नग़्मे बिखर गए
सलाम संदेलवी
तरब-आफ़रीं है कितना सर-ए-शाम ये नज़ारा
सलाम संदेलवी
ये धरती ख़ूब-सूरत है
सलाम मछली शहरी
जंगली नाच
सलाम मछली शहरी
शगुफ़्ता बच्चों का चेहरा दिखाई देने लगे
सलाम मछली शहरी
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