शायद Poetry (page 9)
दुनिया शायद भूल रही है
शारिक़ कैफ़ी
चेहरे का आफ़्ताब दिखाई न दे तो फिर
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
यूँ ब-ज़ाहिर देखे तो यार सब
शम्स तबरेज़ी
दूर फ़ज़ा में एक परिंदा खोया हुआ उड़ानों में
शम्स फ़र्रुख़ाबादी
चाँद तारों ने भी जब रख़्त-ए-सफ़र खोला है
शम्स फ़र्रुख़ाबादी
मिरे अतराफ़ ये कैसी सदाएँ रक़्स करती हैं
शमीम रविश
दूर तक फैली हुई है तीरगी बातें करो
शमीम रविश
सय्याल तसव्वुर है उबलने की तरह का
शमीम क़ासमी
पी ले जो लहू दिल का वो इश्क़ की मस्ती है
शमीम करहानी
न पूछ कब से ये दम घुट रहा है सीने में
शमीम जयपुरी
तुम्हारे चाक पर ऐ कूज़ा-गर लगता है डर हम को
शमीम हनफ़ी
शाम आई सेहन-ए-जाँ में ख़ौफ़ का बिस्तर लगा
शमीम हनफ़ी
लक़ड़हारे तुम्हारे खेल अब अच्छे नहीं लगते
शमीम हनफ़ी
बे-नवा
शमीम अल्वी
गर्द-ए-मजनूँ ले के शायद बाद-ए-सहरा जाए है
शकील जाज़िब
कोई भी दार से ज़िंदा नहीं उतरता है
शकील जमाली
हर चीज़ नहीं है मरकज़ पर इक ज़र्रा इधर इक ज़र्रा उधर
शकील बदायुनी
सुब्ह का अफ़्साना कह कर शाम से
शकील बदायुनी
लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकाँ से पहले
शकील बदायुनी
कोई आरज़ू नहीं है कोई मुद्दआ' नहीं है
शकील बदायुनी
जाम गर्दिश में है दर-बंद हैं मय-ख़ानों के
शकील बदायुनी
हंगामा-ए-ग़म से तंग आ कर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे
शकील बदायुनी
हाए इस मजबूरी-ए-ज़ौक़-ए-नज़र को क्या करूँ
शकील बदायुनी
बस इक निगाह-ए-करम है काफ़ी अगर उन्हें पेश-ओ-पस नहीं है
शकील बदायुनी
कोई भूला हुआ चेहरा नज़र आए शायद
शकेब जलाली
आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे
शकेब जलाली
मुबारक वो साअत
शकेब जलाली
समझ सको तो ये तिश्ना-लबी समुंदर है
शकेब जलाली
मौज-ए-ग़म इस लिए शायद नहीं गुज़री सर से
शकेब जलाली
हवा-ए-शब से न बुझते हैं और न जलते हैं
शकेब जलाली
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