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Collection: शायद Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 23 - Darsaal

शायद Poetry (page 23)

गूँजता शहरों में तन्हाई का सन्नाटा तो है

बाक़र मेहदी

साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है

बलवान सिंह आज़र

तर्सील

बलराज कोमल

तहलील

बलराज कोमल

सर-ए-राहगुज़र एक मंज़र

बलराज कोमल

सबा के हाथ पीले हो गए

बलराज कोमल

नन्हा शहसवार

बलराज कोमल

मैं, एक और मैं

बलराज कोमल

गिर्या-ए-सगाँ

बलराज कोमल

एक पुर-असरार सदा

बलराज कोमल

दीवारें

बलराज कोमल

दीदा-ए-तर

बलराज कोमल

समुंदर है कोई आँखों में शायद

बकुल देव

हमें देखा न कर उड़ती नज़र से

बकुल देव

दमक उठी है फ़ज़ा माहताब-ए-ख़्वाब के साथ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

ख़बर शाकी है

बद्र वास्ती

तुम्हारे दिल में जो ग़म बसा है तो मैं कहाँ हूँ

बद्र वास्ती

गुम-शुदा मौसम का आँखों में कोई सपना सा था

बदनाम नज़र

कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में

अज़्म बहज़ाद

कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में

अज़्म बहज़ाद

ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ

अज़ीज़ वारसी

हज़ार बार आज़मा चुका है मगर अभी आज़मा रहा है

अज़ीज़ तमन्नाई

मुजस्समा

अज़ीज़ तमन्नाई

हर आईना इक अक्स-ए-नौ ढूँडता है

अज़ीज़ तमन्नाई

उफ़ुक़ के उस पार कर रहा है कोई मिरा इंतिज़ार शायद

अज़ीज़ तमन्नाई

कमाल-ए-हुस्न का जब भी ख़याल आया है

अज़ीज़ साबरी

कावाक

अज़ीज़ क़ैसी

बाक़ीस्त शब-ए-फ़ित्ना

अज़ीज़ क़ैसी

सूरत-ए-ज़ंजीर मौज-ए-ख़ूँ में इक आहंग है

अज़ीज़ हामिद मदनी

इस घर के चप्पे चप्पे पर छाप है रहने वाले की

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

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