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Collection: शौक Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 38 - Darsaal

शौक Poetry (page 38)

ये मायूसी कहीं वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न बन जाए

चराग़ हसन हसरत

उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है

चकबस्त ब्रिज नारायण

कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में

चकबस्त ब्रिज नारायण

अभी बादलों का सफ़र कहाँ मिरे मेहरबाँ

बुशरा हाश्मी

मंज़रों के दरमियाँ मंज़र बनाना चाहिए

बुशरा एजाज़

सोज़-ए-फ़िराक़ दिल में छुपाए हुए हैं हम

बबल्स होरा सबा

सुलगती रेत में इक चेहरा आब सा चमका

बृजेश अम्बर

तुझ से तसव्वुरात में ऐ जान-ए-आरज़ू

ब्रहमा नन्द जलीस

ख़ुश्बू को फैलने का बहुत शौक़ है मगर

बिस्मिल सईदी

सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते

बिस्मिल सईदी

कब से उलझ रहे हैं दम-ए-वापसीं से हम

बिस्मिल सईदी

फ़राहम जिस क़दर इशरत के सामाँ होते जाते हैं

बिस्मिल सईदी

सहर हुई तो ख़यालों ने मुझ को घेर लिया

बिस्मिल साबरी

जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अल्लाह तेरे हाथ है अब आबरू-ए-शौक़

बिस्मिल अज़ीमाबादी

सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को

बिस्मिल अज़ीमाबादी

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अब दम-ब-ख़ुद हैं नब्ज़ की रफ़्तार देख कर

बिस्मिल अज़ीमाबादी

मिल चुका महफ़िल में अब लुत्फ़-ए-शकेबाई मुझे

बिस्मिल इलाहाबादी

सब उम्र तो जारी नहीं रहता है सफ़र भी

बिस्मिल आग़ाई

ज़ब्त-ए-नाला दिल-ए-फ़िगार न कर

बिर्ज लाल रअना

ज़ख़्म को फूल कहें नौहे को नग़्मा समझें

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

हम काफ़िरों ने शौक़ में रोज़ा तो रख लिया

भारत भूषण पन्त

हर एक रात में अपना हिसाब कर के मुझे

भारत भूषण पन्त

वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी

बेख़ुद देहलवी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

कब तक करेंगे जब्र दिल-ए-ना-सुबूर पर

बेख़ुद देहलवी

दिल है मुश्ताक़ जुदा आँख तलबगार जुदा

बेख़ुद देहलवी

आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को

बेख़ुद देहलवी

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