शौक Poetry (page 12)
पुरखों से जो मिली है वो दौलत भी ले न जाए
शीन काफ़ निज़ाम
ख़ौफ़-ए-सहरा
शाज़ तमकनत
वो नियाज़-ओ-नाज़ के मरहले निगह-ओ-सुख़न से चले गए
शाज़ तमकनत
राह-ए-वफ़ा में साया-ए-दीवार-ओ-दर भी है
शायान क़ुरैशी
रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर
शौक़ क़िदवाई
रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर
शौक़ क़िदवाई
फ़रियाद और तुझ को सितमगर कहे बग़ैर
शौक़ क़िदवाई
शब-हाए-ऐश का वो ज़माना किधर गया
शौक़ देहलवी मक्की
न जब देखी गई मेरी तड़प मेरी परेशानी
शौक़ बहराइची
ख़ौफ़ इक दिल में समाया लरज़ उट्ठा काग़ज़
शौक़ बहराइची
बिखरे तो फिर बहम मिरे अज्ज़ा नहीं हुए
शाैकत वास्ती
बिखरे तो फिर बहम मिरे अज्ज़ा नहीं हुए
शाैकत वास्ती
ये रात कितनी भयानक है बाम-ओ-दर के लिए
शातिर हकीमी
आइना देखूँ मगर क्या देखूँ
शर्मा तासीर
मुमकिन ही न थी ख़ुद से शनासाई यहाँ तक
शारिक़ कैफ़ी
जो अपने सर पे सर-ए-शाख़-ए-आशियाँ गुज़री
शरीफ़ कुंजाही
अब किसी शाख़ पे हिलता नहीं पत्ता कोई
शरीफ़ कुंजाही
मौसम-ए-संग-ओ-रंग से रब्त-ए-शरार किस को था
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
हम तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का गिला भी नहीं करते
शम्स ज़ुबैरी
वजूद-ए-बर्क़ ज़रूरी है गुलिस्ताँ के लिए
शम्स इटावी
बहार-ए-ज़ीस्त की महरूमियाँ अरे तौबा
शम्स फ़र्रुख़ाबादी
महबूब सा अंदाज़-ए-बयाँ बे-अदबी है
शमीम तारिक़
ज़ुल्मत-गह-ए-दौराँ में सुब्ह-ए-चमन-ए-दिल हूँ
शमीम करहानी
याद की सुब्ह ढल गई शौक़ की शाम हो गई
शमीम करहानी
चमन लहक के रह गया घटा मचल के रह गई
शमीम करहानी
इस इल्तिफ़ात पर कोई दामन न थाम ले
शमीम जयपुरी
इलाही काश ग़म-ए-इश्क़ काम कर जाए
शमीम जयपुरी
शाम आई सेहन-ए-जाँ में ख़ौफ़ का बिस्तर लगा
शमीम हनफ़ी
किताब पढ़ते रहे और उदास होते रहे
शमीम हनफ़ी
अब क़ैस है कोई न कोई आबला-पा है
शमीम हनफ़ी
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