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Collection: शौक Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 10 - Darsaal

शौक Poetry (page 10)

तिरी याद जो मेरे दिल में है बस उसी की जल्वागरी रही

सूफ़िया अनजुम ताज

बंद हो जाए मिरी आँख अगर

सूफ़ी तबस्सुम

वो वुसअतें थीं दिल में जो चाहा बना लिया

सूफ़ी तबस्सुम

उठी है जो क़दमों से वो दामन से अड़ी है

सूफ़ी तबस्सुम

तिरी महफ़िल में सोज़-ए-जावेदानी ले के आया हूँ

सूफ़ी तबस्सुम

ख़ामोशी कलाम हो गई है

सूफ़ी तबस्सुम

हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं

सूफ़ी तबस्सुम

हर एक नक़्श तिरे पाँव का निशाँ सा है

सूफ़ी तबस्सुम

अफ़्साना-हा-ए-दर्द सुनाते चले गए

सूफ़ी तबस्सुम

निगाह मुझ से मिलाने की उन में ताब नहीं

सिया सचदेव

यारब सराब-ए-अहल-ए-हवस से नजात दे

सिराजुद्दीन ज़फ़र

उठो ज़माने के आशोब का इज़ाला करें

सिराजुद्दीन ज़फ़र

मौसम-ए-गुल तिरे इनआ'म अभी बाक़ी हैं

सिराजुद्दीन ज़फ़र

दिन को बहर-ओ-बर का सीना चीर कर रख दीजिए

सिराजुद्दीन ज़फ़र

दर-ए-मय-ख़ाना से दीवार-ए-चमन तक पहुँचे

सिराजुद्दीन ज़फ़र

और खुल जा कि मआ'रिफ़ की गुज़रगाहों में

सिराजुद्दीन ज़फ़र

वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से

सिराज लखनवी

मत करो शम्अ को बदनाम जलाती वो नहीं

सिराज औरंगाबादी

था बहाना मुझे ज़ंजीर के हिल जाने का

सिराज औरंगाबादी

सनम ख़ुश तबईयाँ सीखे हो तुम किन किन ज़रीफ़ों सीं

सिराज औरंगाबादी

पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो

सिराज औरंगाबादी

मुझ पर ऐ महरम-ए-जाँ पर्दा-ए-असरार कूँ खोल

सिराज औरंगाबादी

मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा

सिराज औरंगाबादी

किया ग़म ने सरायत बे-निहायत

सिराज औरंगाबादी

ख़ूब बूझा हूँ मैं उस यार कूँ कुइ क्या जाने

सिराज औरंगाबादी

जिस दिन सीं मैं यार बूझता हूँ

सिराज औरंगाबादी

अमल सें मय-परस्तों के तुझे क्या काम ऐ वाइ'ज़

सिराज औरंगाबादी

ऐ दोस्त तलत्तुफ़ सीं मिरे हाल कूँ आ देख

सिराज औरंगाबादी

आया पिया शराब का प्याला पिया हुआ

सिराज औरंगाबादी

हज़ार नक़्स हैं मुझ में मिरे कमाल को देख

सिकंदर अली वज्द

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