शबनम Poetry (page 11)
जब अयाँ सुब्ह को वो नूर-ए-मुजस्सम हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
हम कि शोला भी हैं और शबनम भी
बाक़ी सिद्दीक़ी
सुब्ह का भेद मिला क्या हम को
बाक़ी सिद्दीक़ी
बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है
बाक़र मेहदी
शायद
बलराज कोमल
सबा के हाथ पीले हो गए
बलराज कोमल
मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम
ज़फ़र
सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी
अज़रा परवीन
सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी
अज़रा परवीन
जिस को चलना है चले रख़्त-ए-सफ़र बाँधे हुए
अज़ीज़ तमन्नाई
तमीज़ अपने में ग़ैर में क्या तुम्हें जो अपना न कर सके हम
अज़ीज़ क़ैसी
मिटा के अंजुमन-ए-आरज़ू सदा दी है
अज़ीज़ क़ैसी
अपनों के करम से या क़ज़ा से
अज़ीज़ क़ैसी
सर-ए-सहरा-ए-जाँ हम चाक-दामानी भी करते हैं
अज़ीज़ नबील
लज़्ज़त-ए-ग़म
अज़ीज़ लखनवी
इक ख़्वाब-ए-आतिशीं का वो महरम सा रह गया
अज़ीज़ हामिद मदनी
कभी नाकामियों का अपनी हम मातम नहीं करते
आज़ाद गुरदासपुरी
कुछ और हो भी तो राएगाँ है
अय्यूब ख़ावर
उदास बैठा दिए ज़ख़्म के जलाए हुए
अतीक़ अंज़र
आज भी जिस की ख़ुश्बू से है मतवाली मतवाली रात
अताउर्रहमान जमील
ज़िंदगी आईना है आईना-आराई है
अता शाद
बचपन के हैं ख़्वाब सुहाने तितली फूल और मैं
असलम फ़ैज़ी
धूप के बादल बरस कर जा चुके थे और मैं
असलम आज़ाद
वक़्त का कुछ रुका सा धारा है
असलम आज़ाद
जगमगाती ख़्वाहिशों का नूर फैला रात भर
असलम आज़ाद
एक समुंदर एक किनारा एक सितारा काफ़ी है
असलम अंसारी
बुझी है आतिश-ए-रंग-ए-बहार आहिस्ता आहिस्ता
असलम अंसारी
फबा है रुख़ पे तिरे ख़ुश-नुमा सनम लेकिन
आसिफ़ुद्दौला
ये अश्क चश्मों में हमदम रहे रहे न रहे
आसिफ़ुद्दौला
वो फूल हो सितारा हो शबनम हो झील हो
अशफ़ाक़ नासिर
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