रेगिस्तान Poetry (page 27)

जज़ीरे हों कि वो सहरा हों ख़्वाब होना है

ग़यास मतीन

आँख की पुतली में सूरज सर में कुछ सौदा उगा

ग़यास मतीन

भीगी भीगी बरखा रुत के मंज़र गीले याद करो

ग़ौस सीवानी

जुनूँ में देर से ख़ुद को पुकारता हूँ मैं

ग़नी एजाज़

अल्फ़ाज़-ए-बे-सदा का इम्कान आइने में

ग़ालिब इरफ़ान

सदा ब-सहरा

ग़ालिब अहमद

तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है

ग़ालिब

रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़

ग़ालिब

पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द

ग़ालिब

न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही

ग़ालिब

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है

ग़ालिब

जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई

ग़ालिब

हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो

ग़ालिब

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का

ग़ालिब

दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया

ग़ालिब

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

ग़ालिब

आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है

ग़ालिब

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे

ग़ालिब

वो टुकड़ा रात का बिखरा हुआ सा

गौतम राजऋषि

सुब्ह तक हम रात का ज़ाद-ए-सफ़र हो जाएँगे

फ़ुज़ैल जाफ़री

दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो

फ़ितरत अंसारी

तमाम अजनबी चेहरे सजे हैं चारों तरफ़

फ़िराक़ जलालपुरी

तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को ज़ख़्म-ए-दामन-दार होना था

फ़ाज़िल अंसारी

अश्क आया आँख में जलता हुआ

फ़ाज़िल अंसारी

और क्या मुझ से कोई साहिब-नज़र ले जाएगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

इस तमाशे का सबब वर्ना कहाँ बाक़ी है

फ़रियाद आज़र

तुम तो ख़ुद सहरा की सूरत बिखरे बिखरे लगते हो

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

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