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Collection: सहर Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 33 - Darsaal

सहर Poetry (page 33)

ख़दशे थे शाम-ए-हिज्र के सुब्ह-ए-ख़ुशी के साथ

औलाद अली रिज़वी

ख़्वाहिशें दुनिया की बार-ए-दोश-ओ-गर्दन हो गईं

औज लखनवी

जब भी तन्हाई के एहसास से घबराता हूँ

अतीक़ुल्लाह

ख़ुद को किसी की राह-गुज़र किस लिए करें

अतहर नासिक

ख़ुद को किसी की राहगुज़र किस लिए करें

अतहर नासिक

अगर यक़ीन न रखते गुमान तो रखते

अतहर नासिक

वो दौर क़रीब आ रहा है

अतहर नफ़ीस

दिल तो बरसाता है हर रोज़ ही ग़म के सावन

अतहर अज़ीज़

शब-गज़ीदा के घर नहीं आती

अतीया नियाज़ी

गुज़िश्ता रात कोई चाँद घर में उतरा था

अतीक़ अंज़र

आए हैं लोग रात की दहलीज़ फाँद कर

अताउल हक़ क़ासमी

थोड़ी सी उस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए

अताउल हक़ क़ासमी

थोड़ी सी इस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए

अताउल हक़ क़ासमी

गहरी है शब की आँच कि ज़ंजीर-ए-दर कटे

अता शाद

तीरगी शम्अ बनी राहगुज़र में आई

अता आबिदी

शहर-ए-निगार

असरार-उल-हक़ मजाज़

पर्दा और इस्मत

असरार-उल-हक़ मजाज़

किस से मोहब्बत है

असरार-उल-हक़ मजाज़

ख़्वाब-ए-सहर

असरार-उल-हक़ मजाज़

ख़ाना-ब-दोश

असरार-उल-हक़ मजाज़

इंक़लाब

असरार-उल-हक़ मजाज़

यूँही बैठे रहो बस दर्द-ए-दिल से बे-ख़बर हो कर

असरार-उल-हक़ मजाज़

रुख़्सत ऐ हम-सफ़रो शहर-ए-निगार आ ही गया

असरार-उल-हक़ मजाज़

ऐसी नई कुछ बात न होगी

असरारुल हक़ असरार

ये हिकायत तमाम को पहुँची

असलम फ़र्रुख़ी

हर शख़्स इस हुजूम में तन्हा दिखाई दे

असलम अंसारी

इक बर्ग बर्ग दिन की ख़बर चाहिए मुझे

असलम अंसारी

ओझल हुई नज़र से बे-बाल-ओ-पर गई है

अासिफ़ साक़िब

बज़्म-ए-सुख़न को आप की दिल-गीर चल पड़े

अासिफ़ साक़िब

तज़लील

आसिफ़ रज़ा

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