सहर Poetry (page 32)
हो चुका वाज़ का असर वाइज़
बहराम जी
दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह
बहराम जी
निबाह बात का उस हीला-गर से कुछ न हुआ
ज़फ़र
जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो
ज़फ़र
जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं
ज़फ़र
ज़ेहन और दिल में जो रहती है चुभन खुल जाए
बद्र वास्ती
तिरी तलाश में निकले हैं तेरे दीवाने
अज़ीज़ वारसी
सफ़र मुदाम सफ़र
अज़ीज़ तमन्नाई
हर आईना इक अक्स-ए-नौ ढूँडता है
अज़ीज़ तमन्नाई
ज़िंदगी यूँ तो गुज़र जाती है आराम के साथ
अज़ीज़ तमन्नाई
उफ़ुक़ के उस पार कर रहा है कोई मिरा इंतिज़ार शायद
अज़ीज़ तमन्नाई
जिस को चलना है चले रख़्त-ए-सफ़र बाँधे हुए
अज़ीज़ तमन्नाई
हर एक रंग में यूँ डूब कर निखरते रहे
अज़ीज़ तमन्नाई
दहर में इक तिरे सिवा क्या है
अज़ीज़ तमन्नाई
हिज्र की रात काटने वाले
अज़ीज़ लखनवी
ये मशवरा बहम उठ्ठे हैं चारा-जू करते
अज़ीज़ लखनवी
ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं
अज़ीज़ लखनवी
न हुई हम से शब बसर न हुई
अज़ीज़ लखनवी
क्यूँ ख़फ़ा हो क्यूँ इधर आते नहीं
अज़ीज़ हैदराबादी
सँभल न पाए तो तक़्सीर-ए-वाक़ई भी नहीं
अज़ीज़ हामिद मदनी
थकन से चूर हूँ लेकिन रवाँ-दवाँ हूँ मैं
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
'शफ़क़' का रंग कितने वालेहाना-पन से बिखरा है
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़
ख़ाक ओ ख़ला का हिसार और मैं
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़
हर इक फ़नकार ने जो कुछ भी लिक्खा ख़ूब-तर लिक्खा
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़
अफ़्सुर्दगी-ए-दर्द-ए-फ़राक़त है सहर तक
अज़हर नक़वी
देखिए चलता है पैमाना किधर से पहले
अज़हर लखनवी
वही यकसानियत-ए-शाम-ओ-सहर है कि जो थी
अज़ीम मुर्तज़ा
ज़ब्त करना न कभी ज़ब्त में वहशत करना
अय्यूब ख़ावर
उभरते चाँद सितारों का तज़्किरा भी करो
औलाद अली रिज़वी
नाव तूफ़ान में जब ज़ेर-ओ-ज़बर होती है
औलाद अली रिज़वी
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