सहर Poetry (page 18)

हिज्र की शब हाथ में ले कर चराग़-ए-माहताब

रिन्द लखनवी

तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे

रिन्द लखनवी

सातों फ़लक किए तह-ओ-बाला निकल गया

रिन्द लखनवी

नज्म-ए-सहर

रिफ़अत सरोश

चाँद वीरान है सदियों से मिरे दिल की तरह

रिफ़अत सरोश

ख़ुदा से उसे माँग कर देखते हैं

रेनू नय्यर

ख़ुदा से उसे माँग कर देखते हैं

रेनू नय्यर

क्यूँ तिरे साथ रहीं उम्र बसर होने तक

रहमान फ़ारिस

ये बात तिरी चश्म-ए-फुसूँ-कार ही समझे

रज़ा जौनपुरी

दिल को मामूर करो जज़्ब-ओ-असर से पहले

रज़ा जौनपुरी

मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है

रज़ा हमदानी

जुनूँ का राज़ मोहब्बत का भेद पा न सकी

रज़ा हमदानी

रंग उस महफ़िल-ए-तमकीं में जमाया न गया

रविश सिद्दीक़ी

जिस तरह अश्क चश्म-ए-तर से गिरे

रौनक़ टोंकवी

ठोकरों की शय परस्तिश की नज़र तक ले गए

रौनक़ रज़ा

न जाने कब से मैं गर्द-ए-सफ़र की क़ैद में था

रौनक़ रज़ा

जब कभी यादों का दरवाज़ा खुला आख़िर-ए-शब

रौनक़ दकनी

मौजों ने हाथ दे के उभारा कभी कभी

रतन पंडोरवी

मैं जंग जीत के जब्र-ओ-अना की हार गया

रासिख़ इरफ़ानी

तुम्हें ऐसा बे-रहम जाना न था

रासिख़ अज़ीमाबादी

ख़िज़ाँ की बात न ज़िक्र-ए-बहार करते हैं

रशक खलीली

रौशनी बन के अँधेरे पे असर हम ने किया

राशिद तराज़

जिस को देखो एहतिसाब-ए-ज़ीस्त से ग़ाफ़िल है आज

रशीद शाहजहाँपुरी

लाख मुझे दोश पे सर चाहिए

राशिद मुफ़्ती

कोई साया न शजर याद आया

राशिद हामिदी

अजीब जुम्बिश-ए-लब है ख़िताब भी न करे

राशिद आज़र

किस को लहद और मर्ग का डर हो

रशीद रामपुरी

माना वो एक ख़्वाब था धोका नज़र का था

रशीद क़ैसरानी

माना वो एक ख़्वाब था धोका नज़र का था

रशीद क़ैसरानी

कौन कहता है तिरे दिल में उतर जाऊँगा

रशीद क़ैसरानी

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