सहर Poetry (page 15)

दस्त-ए-शबनम पे दम-ए-शो'ला-नवाई न रखो

समद अंसारी

चश्म-ए-हैराँ को यूँ ही महव-ए-नज़र छोड़ गए

समद अंसारी

हिसार-ए-तीरगी

सलमान अंसारी

हम झुकाते भी कहाँ सर को क़ज़ा से पहले

सलमा शाहीन

चश्म-ए-नम पहले शफ़क़ बन के सँवरना चाहे

सलमा शाहीन

ऐ जान-ए-जाँ तिरे मिज़ाज का फ़लक भी ख़ूब है

सलमा शाहीन

सालिम यक़ीन-ए-अज़्मत-ए-सेहर-ए-ख़ुदा न तोड़

सलीम शुजाअ अंसारी

सितारे की तरह सीने में दिल डूबा किया लेकिन

सालिक लखनवी

बढ़ते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद क़दम अज़्म-ए-सफ़र को क्या करूँ

सालिक लखनवी

इक धुँदलका हूँ ज़रा देर में छट जाऊँगा

सलीम सिद्दीक़ी

यूँ तिरी चाप से तहरीक-ए-सफ़र टूटती है

सलीम सिद्दीक़ी

तुझ को पाने के लिए ख़ुद से गुज़र तक जाऊँ

सलीम सिद्दीक़ी

मिरी थकन मिरे क़स्द-ए-सफ़र से ज़ाहिर है

सलीम शाहिद

मंज़र मिरी आँखों में रहे दश्त-ए-सफ़र के

सलीम शाहिद

बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर

सलीम शाहिद

वो तीरगी-ए-शब है कि घर लौट गए हैं

सलीम फ़राज़

कम रंज मौसम-ए-गुल-ए-तर ने नहीं दिया

सलीम फ़राज़

मिला जो काम ग़म-ए-मो'तबर बनाने का

सलीम अहमद

किन नक़ाबों में है मस्तूर वो हुस्न-ए-मा'सूम

सलीम अहमद

देखने के लिए इक शर्त है मंज़र होना

सलीम अहमद

बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द

सलाम संदेलवी

रात दिल को था सहर का इंतिज़ार

सलाम मछली शहरी

सड़क बन रही है

सलाम मछली शहरी

तुम्हें मिरे ख़याल की मुसव्विरी क़ुबूल हो

सलाम मछली शहरी

सुब्ह-दम भी यूँ फ़सुर्दा हो गया

सलाम मछली शहरी

दुआओं में असर बाक़ी न आहों में असर बाक़ी

सज्जाद शम्सी

शो'ला सा कोई बर्क़-ए-नज़र से नहीं उठता

सज्जाद बाक़र रिज़वी

नुमायाँ और भी रुख़ तेरी बे-रुख़ी में रहे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हम राज़-ए-गिरफ़्तारी-ए-दिल जान गए हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

फ़रेब था अक़्ल-ओ-आगही का कि मेरी फ़िक्र-ओ-नज़र का धोका

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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