सहर Poetry (page 13)

तू ज़िद से शब-ए-वस्ल न आया तो हुआ क्या

शाह नसीर

सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा

शाह नसीर

सदा है इस आह-ओ-चश्म-ए-तर से फ़लक पे बिजली ज़मीं पे बाराँ

शाह नसीर

मेरी तुर्बत पर चढ़ाने ढूँडता है किस के फूल

शाह नसीर

जिस्म उस के ग़म में ज़र्द-अज़-ना-तवानी हो गया

शाह नसीर

इक क़ाफ़िला है बिन तिरे हम-राह सफ़र में

शाह नसीर

देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया

शाह नसीर

बदन-दरीदा-ओ-बे-बर्ग-ओ-बार होना भी

शाह हुसैन नहरी

लोग हैं मुंतज़िर-ए-नूर-ए-सहर मुद्दत से

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

कली पर मुस्कुराहट आज भी मालूम होती है

शफ़ीक़ जौनपुरी

कब से इस दुनिया को सरगर्म-ए-सफ़र पाता हूँ मैं

शफ़ीक़ जौनपुरी

मज़ा शबाब का जब है कि बा-ख़ुदा भी रहे

शायर फतहपुरी

गुल याद न अमवाज-ए-नसीम-ए-सहरी याद

शायर फतहपुरी

गले लगाए रहा सब का ध्यान था इतना

शाद शाद नूही

इश्क़-ए-रुख़-ओ-ज़ुल्फ़ में किया कूच

शाद लखनवी

हस्ती-ओ-अदम में नफ़स-ए-चंद बशर के

शाद लखनवी

अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया

शाद अज़ीमाबादी

हमराह मिरे कोई मुसाफ़िर न चला था

शबनम शकील

हमराह मिरे कोई मुसाफ़िर न चला था

शबनम शकील

इक बे-नाम सी खोज है दिल को जिस के असर में रहते हैं

शबनम शकील

आईन-ए-वफ़ा इतना भी सादा नहीं होता

शबनम शकील

मय-ए-फ़राग़त का आख़िरी दौर चल रहा था

शब्बीर शाहिद

मैं रतजगों का सफ़ीर ठहरा था कितनी रातें गुज़ार आया

शब्बीर नकिद

वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़

शानुल हक़ हक़्क़ी

उम्मीद के उफ़ुक़ से न उट्ठा ग़ुबार तक

शानुल हक़ हक़्क़ी

इक तमन्ना कि सहर से कहीं खो जाती है

शानुल हक़ हक़्क़ी

मुद्दत से ढूँडती है किसी की नज़र मुझे

शाद अमृतसरी

सितम-गर को मैं चारा-गर कह रहा हूँ

शाद आरफ़ी

जो भी अपनों से उलझता है वो कर क्या लेगा

शाद आरफ़ी

तिरा वहशी कुछ आगे है जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ से

सेहर इश्क़ाबादी

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