सहर Poetry (page 10)

इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

ख़ून-ए-दिल होता रहा ख़ून-ए-जिगर होता रहा

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

वो रू-ब-रू हों तो ये कैफ़-ए-इज़्तिराब न हो

शिव दयाल सहाब

मिरी आह बे-असर है मैं असर कहाँ से लाऊँ

शेवन बिजनौरी

जल्वा बे-माया सा था चश्म-ओ-नज़र से पहले

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

ये इक़ामत हमें पैग़ाम-ए-सफ़र देती है

ज़ौक़

गुहर को जौहरी सर्राफ़ ज़र को देखते हैं

ज़ौक़

ऐ 'ज़ौक़' वक़्त नाले के रख ले जिगर पे हाथ

ज़ौक़

उठ सुब्ह हुई मुर्ग़-ए-चमन नग़्मा-सरा देख

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

था ग़ैर का जो रंज-ए-जुदाई तमाम शब

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

शब वस्ल की भी चैन से क्यूँकर बसर करें

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

गोर में याद-ए-क़द-ए-यार ने सोने न दिया

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे

शीन काफ़ निज़ाम

आँखों में रात ख़्वाब का ख़ंजर उतर गया

शीन काफ़ निज़ाम

मेरी वहशत का तिरे शहर में चर्चा होगा

शाज़ तमकनत

किस किस को अब रोना होगा जाने क्या क्या भूल गया

शाज़ तमकनत

जाने वाले तुझे कब देख सकूँ बार-ए-दिगर

शाज़ तमकनत

सफ़र कहने को जारी है मगर अज़्म-ए-सफ़र ग़ाएब

शायान क़ुरैशी

राह-ए-वफ़ा में साया-ए-दीवार-ओ-दर भी है

शायान क़ुरैशी

वो ले के दिल को ये सोची कहीं जिगर भी है

शौक़ क़िदवाई

कुछ तो देखें असर चराग़ चले

शौक़ माहरी

मंज़िल है कठिन कम ज़ाद-ए-सफ़र मालूम नहीं क्या होना है

शौक़ बहराइची

ख़िलाफ़-ए-हंगामा-ए-तशद्दुद क़दम जो हम ने बढ़ा दिए हैं

शौक़ बहराइची

एक आसेब का साया था जो सर से उतरा

शौकत काज़मी

ये रात कितनी भयानक है बाम-ओ-दर के लिए

शातिर हकीमी

दर से मायूस तिरे तालिब-ए-इकराम चले

शातिर हकीमी

क़ुदरत है तुर्फ़ा-कार तुझे कुछ ख़बर भी है

शारिक़ ईरायानी

तू समझता है तो ख़ुद तेरी नज़र गहरी नहीं

शरीफ़ कुंजाही

हमारे जिस्म के अंदर भी कोई रहता है

शारिब मौरान्वी

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