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Collection: सन्नाटा Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 7 - Darsaal

सन्नाटा Poetry (page 7)

कहा था मैं ने क्या तू ने सुना क्या

अली वजदान

तीन शराबी

अली सरदार जाफ़री

एक बात

अली सरदार जाफ़री

मुफ़ाहमत

अख़्तर-उल-ईमान

डासना स्टेशन का मुसाफ़िर

अख़्तर-उल-ईमान

दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या

अख़्तर सईद ख़ान

आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा रहा

अख़्तर सईद ख़ान

सन्नाटा

अख़्तर राही

यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

दश्त-ए-अदम का सन्नाटा

अकबर हैदराबादी

जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया

अकबर इलाहाबादी

फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है

ऐतबार साजिद

फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है

ऐतबार साजिद

इक साया मेरे जैसा है

ऐन इरफ़ान

जंगल का सन्नाटा मेरा दुश्मन है

अहमद ज़फ़र

कुछ शफ़क़ डूबते सूरज की बचा ली जाए

अहमद शनास

दिल की ख़्वाहिश बढ़ते बढ़ते तूफ़ाँ होती जाती है

अहमद शाहिद ख़ाँ

शुऊर में कभी एहसास में बसाऊँ उसे

अहमद नदीम क़ासमी

अन-पढ़ गूँगे का रजज़

अहमद जावेद

पहली आवाज़

अहमद फ़राज़

काली दीवार

अहमद फ़राज़

सभी बिछड़ गए मुझ से गुज़रते पल की तरह

आफ़ताब शम्सी

अपनी कैफ़िय्यतें हर आन बदलती हुई शाम

आफ़ताब इक़बाल शमीम

ख़याल

अफ़रोज़ आलम

मेज़ क़लम क़िर्तास दरीचा सन्नाटा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

चुप

अब्दुर्रशीद

कोई बस्ती कोई क़र्या नहीं है

अब्दुल क़वी ज़िया

पाँव रुकते ही नहीं ज़ेहन ठहरता ही नहीं

अब्दुल हमीद

तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप

अब्बास ताबिश

तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप

अब्बास ताबिश

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