सनम Poetry (page 11)
मस्त हूँ मस्त हूँ ख़राब ख़राब
दाऊद औरंगाबादी
हुस्न इस शम्अ-रू का है गुल-रंग
दाऊद औरंगाबादी
दिल में ख़याल-ए-यार है जासूस की नमत
दाऊद औरंगाबादी
अगर वो गुल-बदन मुझ पास हो जावे तो क्या होवे
दाऊद औरंगाबादी
इक ख़्वाब का ख़याल है दुनिया कहें जिसे
दत्तात्रिया कैफ़ी
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
दाग़ देहलवी
बाक़ी जहाँ में क़ैस न फ़रहाद रह गया
दाग़ देहलवी
बाब-ए-रहमत पे दुआ गिर्या-कुनाँ हो जैसे
दाएम ग़व्वासी
संग को छोड़ के तू ने कभी सोचा ही नहीं
बबल्स होरा सबा
ख़ामुशी में क़यास मेरा है
बबल्स होरा सबा
बे-क़रारी दिल-ए-मुज़्तर की बढ़ाई हम ने
बबल्स होरा सबा
मर गए हम पर न आए तुम ख़बर को ऐ सनम
भारतेंदु हरिश्चंद्र
रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी
भारतेंदु हरिश्चंद्र
दश्त-पैमाई का गर क़स्द मुकर्रर होगा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी
भारतेंदु हरिश्चंद्र
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
न कुनिश्त ओ कलीसा से काम हमें दर-ए-दैर न बैत-ए-हरम से ग़रज़
बेदम शाह वारसी
काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए
बेदम शाह वारसी
हक़-केश की फ़रियाद
बेबाक भोजपुरी
कोई सनम तो हो कोई अपना ख़ुदा तो हो
बशर नवाज़
ख़ुद-फ़रोशी को जो तू निकले ब-शक्ल-ए-यूसुफ़
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
मतलब न काबे से न इरादा कनिश्त का
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
दिल जो सूरत-गर-ए-मअ'नी का सनम-ख़ाना बने
बर्क़ देहलवी
यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
रंग में हम मस से बतर हो चुके
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
मेरे सनम-कदे में कई और बुत भी हैं
बाक़र मेहदी
अब ख़ानुमाँ-ख़राब की मंज़िल यहाँ नहीं
बाक़र मेहदी
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