सागर Poetry (page 32)
मैं वुसअतों से बिछड़ के तन्हा न जी सकूँगा
अरशद नईम
जो बुझ गए थे चराग़ फिर से जला रहा है
अरशद नईम
जब मैं उस आदमी से दूर हुआ
अरशद लतीफ़
कभी अंगड़ाई ले कर जब समुंदर जाग उठता है
अरशद कमाल
हम ज़ीस्त की मौजों से किनारा नहीं करते
अरशद कमाल
किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे
अरशद जमाल 'सारिम'
मुझ सा बेताब यहाँ कोई नहीं मेरे सिवा
अरशद अब्दुल हमीद
हाँ समुंदर में उतर लेकिन उभरने की भी सोच
अर्श सिद्दीक़ी
हैराँ हूँ कि ये कौन सा दस्तूर-ए-वफ़ा है
अर्श सिद्दीक़ी
बंद आँखों से न हुस्न-ए-शब का अंदाज़ा लगा
अर्श सिद्दीक़ी
निगाह-ए-तिश्ना से हैरत का बाब देखते हैं
अरमान नज्मी
दोज़ख़ भी क्या गुमान है जन्नत भी है फ़रेब
आरिफ़ शफ़ीक़
अंधे अदम वजूद के गिर्दाब से निकल
आरिफ़ शफ़ीक़
हर किसी के लिए दुआ करना
आरिफ़ इशतियाक़
अभी तो मैं ने फ़क़त बारिशों को झेला है
आरिफ़ इमाम
फ़सील-ए-ज़ात से बाहर भी देखना है मुझे
आरिफ़ इमाम
बावरे मन की बावरी ख़ुशबू
आराधना प्रसाद
आज की तारीख़ में इंसाँ मुकम्मल कौन है
आराधना प्रसाद
जो सुनता हूँ कहूँगा मैं जो कहता हूँ सुनूँगा मैं
अनवर शऊर
कल शाम परिंदों को उड़ते हुए यूँ देखा
अनवर सदीद
नया शहर
अनवर सदीद
ज़ोर से आँधी चली तो बुझ गए सारे चराग़
अनवर सदीद
हर सम्त समुंदर है हर सम्त रवाँ पानी
अनवर सदीद
मख़मली ख़्वाब का आँखों में न मंज़र फैला
अनवर मीनाई
दुनिया भी अजब क़ाफ़िला-ए-तिश्ना-लबाँ है
अनवर मसूद
चढ़ते तूफ़ान को साहिल से गुज़रना था मियाँ
अनवर जमाल अनवर
बे-घर था फिर छोड़ गया घर जाने क्यूँ
अनवर जमाल अनवर
ग़ुस्सैला परिंदा एक दिन उसे खा जाएगा
अनवार फ़ितरत
दर्द उरूज पर आ जाए तो
अनवार फ़ितरत
भारी पेड़ों-तले
अनवार फ़ितरत
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