सागर Poetry (page 30)
मेरा तो नाम रेत के सागर पे नक़्श है
आज़ाद गुलाटी
ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं
आज़ाद गुलाटी
हमारी आँख में ठहरा हुआ समुंदर था
आज़ाद गुलाटी
मोहब्बत का एक साल
अय्यूब ख़ावर
सोचों में लहू उछालते हैं
अय्यूब ख़ावर
सात सुरों का बहता दरिया तेरे नाम
अय्यूब ख़ावर
लहरों में बदन उछालते हैं
अय्यूब ख़ावर
घर दरवाज़े से दूरी पर सात समुंदर बीच
अय्यूब ख़ावर
निहत्ते आदमी पे बढ़ के ख़ंजर तान लेती है
औरंगज़ेब
ख़ुश बहुत आते हैं मुझ को रास्ते दुश्वार से
औरंगज़ेब
निगाह कोई तो तूफ़ाँ में मेहरबान सी है
अतुल अजनबी
इक थकन क़ुव्वत-ए-इज़हार में आ जाती है
अतुल अजनबी
जब भी तन्हाई के एहसास से घबराता हूँ
अतीक़ुल्लाह
दे कर पिछली यादों का अम्बार मुझे
अतीक़ुल्लाह
दे के ख़ुद ख़ून का मंज़र मुझ को
आतिफ़ ख़ान
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
अतहर नफ़ीस
सिसकते फूलों का कोई भी दर्द-मंद नहीं
अतहर अज़ीज़
जिस को देखो वो गिरफ़्तार-ए-बला लगता है
अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी
उदास बैठा दिए ज़ख़्म के जलाए हुए
अतीक़ अंज़र
दिल की दहलीज़ पे दिलबर आया
अतीब एजाज़
नुमाइश में
असरार-उल-हक़ मजाज़
एक जिला-वतन की वापसी
असरार-उल-हक़ मजाज़
पहचान ज़िंदगी की समझ कर मैं चुप रहा
असरार अकबराबादी
ख़्वाब इक जज़ीरा है
असरा रिज़वी
रात फिर ख़्वाब में आने का इरादा कर के
असरा रिज़वी
क्यूँ मुझ से गुरेज़ाँ है मैं तेरा मुक़द्दर हूँ
असलम महमूद
हर रंग-ए-तरब मौसम ओ मंज़र से निकाला
असलम महमूद
देख के अर्ज़ां लहू सुर्ख़ी-ए-मंज़र ख़मोश
असलम महमूद
ज़ीस्त की धूप से यूँ बच के निकलता क्यूँ है
असलम हबीब
उड़ते लम्हों के भँवर में कोई फँसता ही नहीं
असलम आज़ाद
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