सागर Poetry (page 17)
हर एक घर का दरीचा खुला है मेरे लिए
रज़ा हमदानी
दिल बता और क्या है होने को
रज़ा अमरोही
ज़िंदगी की शराब पानी है
रौशन लाल रौशन
देख उफ़ुक़ के पीले-पन में दूर वो मंज़र डूब गया
रौनक़ रज़ा
कितनी सदियों से लम्हों का लोबान जलता रहा
रउफ़ ख़लिश
पत्ते तमाम हल्क़ा-ए-सरसर में रह गए
रऊफ़ ख़ैर
जुनूँ-पसंद हरीफ़-ए-ख़िरद तो हम भी हैं
रऊफ़ ख़ैर
दिल दुख न जाए बात कोई बे-सबब न पूछ
रऊफ़ ख़ैर
शौक़ से आए बुरा वक़्त अगर आता है
रसूल साक़ी
गर्म हर लम्हा लहू जिस्म के अंदर रखना
रासिख़ इरफ़ानी
किन सराबों का मुक़द्दर हुईं आँखें मेरी
राशिद तराज़
ग़ौर करो तो चेहरा चेहरा ओढ़े गहरे गहरे रंग
राशिद मतीन
तड़प उठता हूँ यादों से लिपट कर शाम होते ही
राशिद अनवर राशिद
रेत क़ाबिज़ थी बहुत ख़ामोश लगती थी नदी
राशिद अनवर राशिद
मुंजमिद आख़िर है क्यूँ ता-हद्द-ए-मंज़र फैल जा
राशिद अनवर राशिद
कम से कम अपना भरम तो नहीं खोया होता
राशिद आज़र
ये ज़ाविया सूरज का बदल जाएगा साईं
रशीद क़ैसरानी
ये कौन सा सूरज मिरे पहलू में खड़ा है
रशीद क़ैसरानी
सहरा सहरा बात चली है नगरी नगरी चर्चा है
रशीद क़ैसरानी
सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था
रशीद क़ैसरानी
मैं ने काग़ज़ पे सजाए हैं जो ताबूत न खोल
रशीद क़ैसरानी
चाहत का संसार है झूटा प्यार के सात-समुंदर झूट
रशीद क़ैसरानी
मौसम-ए-गुल भी मिरे घर आया
रशीद कामिल
ताल सोचें न समुंदर सोचें
रशीद एजाज़
ज़िंदगी के सराब भी देखूँ
रसा चुग़ताई
अपनी बे-चेहरगी में पत्थर था
रसा चुग़ताई
इस उजड़े शहर के आसार तक नहीं पहुँचे
रऊफ़ अमीर
फूल खिलते हैं तालाब में तारा होता
रम्ज़ी असीम
नींद आती है मगर ख़्वाब नहीं आते हैं
रम्ज़ी असीम
दर्द-ए-दिल जब कभी अयाँ होगा
रमज़ान अली सहर
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