यात्रा Poetry (page 53)

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

बशीर बद्र

किसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते

बशीर बद्र

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो

बशीर बद्र

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए

बशीर बद्र

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है

बशीर बद्र

घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे

बशीर बद्र

इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को

बशीर बद्र

इन चटख़्ते पत्थरों पर पाँव धरना ध्यान से

बशीर अहमद बशीर

ऐसा तह-ए-अफ़्लाक ख़राबा नहीं कोई

बशीर अहमद बशीर

सारे मंज़र फ़ुसूँ तमाशा हैं

बशर नवाज़

कोई सनम तो हो कोई अपना ख़ुदा तो हो

बशर नवाज़

आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी

बशर नवाज़

उन का या अपना तमाशा देखो

बाक़ी सिद्दीक़ी

रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

कहता है हर मकीं से मकाँ बोलते रहो

बाक़ी सिद्दीक़ी

एतिबार-ए-नज़र करें कैसे

बाक़ी सिद्दीक़ी

उदास बाम है दर काटने को आता है

बाक़ी अहमदपुरी

सामने सब के न बोलेंगे हमारा क्या है

बाक़ी अहमदपुरी

छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

क्या क्या नहीं किया मगर उन पर असर नहीं

बाक़र मेहदी

ख़त्म होता ही नहीं मेरा सफ़र

बलवान सिंह आज़र

चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में

बलवान सिंह आज़र

मिरे सफ़र में ही क्यूँ ये अज़ाब आते हैं

बलवान सिंह आज़र

हादसा होता रहा है मुझ में

बलवान सिंह आज़र

एक पुर-असरार सदा

बलराज कोमल

कौन कहता है ठहर जाना है

बकुल देव

हादसात अब के सफ़र में नए ढब से आए

बकुल देव

बारिशों में अब के याद आए बहुत

बकुल देव

रुत न बदले तो भी अफ़्सुर्दा शजर लगता है

बख़्श लाइलपूरी

जो पी रहा है सदा ख़ून बे-गुनाहों का

बख़्श लाइलपूरी

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