यात्रा Poetry (page 52)

क्या रौशनी-ए-हुस्न-ए-सबीह अंजुमन में है

बिशन नरायण दराबर

ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी

बिर्ज लाल रअना

जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था

बिमल कृष्ण अश्क

जीना है ख़ूब औरों की ख़ातिर जिया करो

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

हमारी जागती आँखों में ख़्वाब सा क्या था

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

घर में जब बेटियाँ नहीं होंगी

बिल्क़ीस ख़ान

कहाँ पहुँचेगा वो कहना ज़रा मुश्किल सा लगता है

भवेश दिलशाद

सब ने होंटों से लगा कर तोड़ डाला है मुझे

भारत भूषण पन्त

मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी

भारत भूषण पन्त

मैं ने सोचा था मुझे मिस्मार कर सकता नहीं

भारत भूषण पन्त

मैं क्या बताऊँ कैसी परेशानियों में हूँ

भारत भूषण पन्त

किसी भी सम्त निकलूँ मेरा पीछा रोज़ होता है

भारत भूषण पन्त

ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है तो बाल-ओ-पर भी चाहिए

भारत भूषण पन्त

ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल

भारत भूषण पन्त

ख़ुद पर जो ए'तिमाद था झूटा निकल गया

भारत भूषण पन्त

कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर

भारत भूषण पन्त

इक गर्दिश-ए-मुदाम भी तक़दीर में रही

भारत भूषण पन्त

दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर

बेख़ुद देहलवी

सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़

बेदम शाह वारसी

बड़ी दिल-शिकन है रह-ए-सफ़र कोई हम-सफ़र है न यार है

बेबाक भोजपुरी

हब्स के दिनों में भी घर से कब निकलते हैं

बशीर सैफ़ी

रुख़ तुम्हारा हो जिधर हम भी उधर हो जाएँगे

बशीर महताब

तख़लीक़-ए-काएनात दिगर कर सके तो कर

बशीर फ़ारूक़

उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे

बशीर बद्र

मिरे साथ चलने वाले तुझे क्या मिला सफ़र में

बशीर बद्र

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है

बशीर बद्र

दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम

बशीर बद्र

ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है

बशीर बद्र

सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे

बशीर बद्र

सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है

बशीर बद्र

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