यात्रा Poetry (page 48)

इक हवा आई है दीवार में दर करने को

फ़रहत एहसास

देखते ही देखते खोने से पहले देखते

फ़रहत एहसास

चाकरी में रह के इस दुनिया की मोहमल हो गए थे

फ़रहत एहसास

तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा'द

फ़रहत अब्बास शाह

शहर-दर-शहर दीदा-वर भटके

फ़रहत अब्बास

जल्वा है वो कि ताब-ए-नज़र तक नहीं रही

फ़रहत अब्बास

तू मिरी इब्तिदा तू मिरी इंतिहा मैं समुंदर हूँ तू साहिलों की हवा

फ़रहान सालिम

शिकस्त-ए-आसमाँ हो जाऊँगा मैं

फ़रहान सालिम

मैं तिरे संग कैसे चलूँ हम-सफ़र तू समुंदर है मैं साहिलों की हवा

फ़रहान सालिम

क्या बताएँ क्या कल शब आख़िरी पहर देखा

फ़रहान सालिम

कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है

फ़रीद परबती

सिकंदर हूँ तलाश-ए-आब-ए-हैवाँ रोज़ करता हूँ

फ़रीद परबती

पहुँच के हम सर-ए-मंज़िल जिन्हें भुला न सके

फ़रीद जावेद

पहुँच के हम सर-ए-मंज़िल जिन्हें भुला न सके

फ़रीद जावेद

न ग़ुरूर है ख़िरद को न जुनूँ में बाँकपन है

फ़रीद जावेद

न ग़ुरूर है ख़िरद को न जुनूँ में बाँकपन है

फ़रीद जावेद

मय-कदे के सिवा मिली है कहाँ

फ़रीद जावेद

दर्द का समुंदर है सिर्फ़ पार होने तक

फ़रह इक़बाल

उसी तरफ़ है ज़माना भी आज महव-ए-सफ़र

फ़राग़ रोहवी

नवाह-ए-जाँ में किसी के उतरना चाहा था

फ़राग़ रोहवी

वो कहते हैं कि है टूटे हुए दिल पर करम मेरा

फ़ानी बदायुनी

उन के जल्वों पे हमा-वक़्त नज़र होती है

फ़ना बुलंदशहरी

कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे

फ़ैज़ अनवर

ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उम्मीद-ए-सहर की बात सुनो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तीन आवाज़ें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कोई आशिक़ किसी महबूबा से!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम तो मजबूर थे इस दिल से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फिर लौटा है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब सफ़र से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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