यात्रा Poetry (page 30)
महसूस लम्स जिस का सर-ए-रह-गुज़र किया
साबिर ज़फ़र
काम इतनी ही फ़क़त राहगुज़र आएगी
साबिर ज़फ़र
ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर
साबिर वसीम
ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर
साबिर वसीम
वो फूल था जादू-नगरी में जिस फूल की ख़ुश्बू भाई थी
साबिर वसीम
तमाम मोजज़े सारी शहादतें ले कर
साबिर वसीम
पलकों पर नम क्या फैल गया
साबिर वसीम
पहला पत्थर याद हमेशा रहता है
साबिर वसीम
ख़िज़ाँ से सीना भरा हो लेकिन तुम अपना चेहरा गुलाब रखना
साबिर वसीम
खेल रचाया उस ने सारा वर्ना फिर क्यूँ होता मैं
साबिर वसीम
इक सफ़र पर उसे भेज कर आ गए
साबिर वसीम
सभी मुसाफ़िर चलें अगर एक रुख़ तो क्या है मज़ा सफ़र का
साबिर
वो और होंगे नुफ़ूस बे-दिल जो कहकशाएँ शुमारते हैं
साबिर
आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो
साबिर
वो आलम तिश्नगी का है सफ़र आसाँ नहीं लगता
सबीला इनाम सिद्दीक़ी
इदराक ही मुहाल है ख़्वाब-ओ-ख़याल का
सबीला इनाम सिद्दीक़ी
आँखों में वो आएँ तो हँसाते हैं मुझे ख़्वाब
सबीला इनाम सिद्दीक़ी
नग़्मा-ज़न है नज़र-ए-बे-आवाज़
सबा नक़वी
हम ने ख़ाक-ए-दर-ए-महबूब जो चेहरे पे मली
सबा जायसी
आज गुज़रे हुए लम्हों को पुकारा जाए
सबा जायसी
ज़िंदगानी हँस के तय अपना सफ़र कर जाएगी
सबा इकराम
जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है
सबा अकबराबादी
आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए
सबा अकबराबादी
कारवाँ लुट गया राहबर छुट गया रात तारीक है ग़म का यारा नहीं
सबा अफ़ग़ानी
अपनी सोचें सफ़र में रहती हैं
सादुल्लाह शाह
ये रात दिन का बदलना नज़र में रहता है
सादुल्लाह शाह
अब्र उतरा है चार-सू देखो
सादुल्लाह शाह
ये सिलसिला-ए-शाम-ओ-सहर यूँही नहीं है
रूही कंजाही
हर तल्ख़ हक़ीक़त का इज़हार भी करना है
रूही कंजाही
चैन घर में न कभी तेरे नगर में पाऊँ
रूही कंजाही
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