सबसे Poetry (page 99)
जश्न-ए-आज़ादी
अर्श मलसियानी
हिन्दोस्तान मेरा
अर्श मलसियानी
भारत के वीर सिपाही
अर्श मलसियानी
15 अगस्त (1949)
अर्श मलसियानी
ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है
अर्श मलसियानी
वो ले के हौसला-ए-अज़्म-ए-बे-पनाह चले
अर्श मलसियानी
तरब के मख़मसे ग़म के झमेले
अर्श मलसियानी
रहगुज़र रहगुज़र से पूछ लिया
अर्श मलसियानी
लुत्फ़ ही लुत्फ़ है जो कुछ है इनायत के सिवा
अर्श मलसियानी
खिंच के महबूब के दामन की तरफ़
अर्श मलसियानी
तह-ए-अफ़्लाक ही सब कुछ नहीं है
अरमान नज्मी
ये शहर है वो शहर कि जिस में हैं बे-वज्ह कामयाब चेहरे
अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ
वहाँ मैं नहीं थी
आरिफ़ा शहज़ाद
जब भी दुश्मन बन के इस ने वार किया
आरिफ़ शफ़ीक़
तुम्हें प्यार है, तो यक़ीन दो,
आरिफ़ इशतियाक़
तो मिरी ज़िंदगी बनोगी तुम
आरिफ़ इशतियाक़
मैं अब उक्ता गया हूँ फुर्क़तों से
आरिफ़ इशतियाक़
दिल टूटा तो क्या से क्या नुक़सान हुआ
आरिफ़ इशतियाक़
ज़ख़्म सब उस को दिखा कर रक़्स कर
आरिफ़ इमाम
बाग़बाँ की बे-रुख़ी से नीले-पीले हो गए
आरिफ़ अंसारी
मेरे ज़ेहन-ओ-दिल में फ़िक्र-ओ-फ़न में था
अक़ील शादाब
हर इक रंज-ओ-ग़म से सुबुक-दोश हो जा
अक़ील नोमानी
कितने सवाल सब की निगाहों में रख दिए
अक़ील दानिश
डुबोए देता है ख़ुद-आगही का बार मुझे
अनवर सिद्दीक़ी
अच्छों को तो सब ही चाहते हैं
अनवर शऊर
आदमी के लिए रोना है बड़ी बात 'शुऊर'
अनवर शऊर
पियो कि मा-हसल-ए-होश किस ने देखा है
अनवर शऊर
मैं ख़ाक हूँ आब हूँ हवा हूँ
अनवर शऊर
ख़त्म हर अच्छा बुरा हो जाएगा
अनवर शऊर
कट चुकी थी ये नज़र सब से बहुत दिन पहले
अनवर शऊर
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