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Collection: सबसे Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 98 - Darsaal

सबसे Poetry (page 98)

क्या कहूँ कितना फ़ुज़ूँ है तेरे दीवाने का दुख

अरशद जमाल 'सारिम'

यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न

अरशद अली ख़ान क़लक़

उम्र तो अपनी हुई सब बुत-परस्ती में बसर

अरशद अली ख़ान क़लक़

'क़लक़' ग़ज़लें पढ़ेंगे जा-ए-कुरआँ सब पस-ए-मुर्दन

अरशद अली ख़ान क़लक़

बहार आते ही ज़ख़्म-ए-दिल हरे सब हो गए मेरे

अरशद अली ख़ान क़लक़

ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत

अरशद अली ख़ान क़लक़

रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का

अरशद अली ख़ान क़लक़

पिन्हाँ था ख़ुश-निगाहों की दीदार का मरज़

अरशद अली ख़ान क़लक़

नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से

अरशद अली ख़ान क़लक़

लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के

अरशद अली ख़ान क़लक़

लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में

अरशद अली ख़ान क़लक़

जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा

अरशद अली ख़ान क़लक़

हैं तेग़-ए-नाज़-ए-यार के बिस्मिल अलग अलग

अरशद अली ख़ान क़लक़

दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया

अरशद अली ख़ान क़लक़

दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है

अरशद अली ख़ान क़लक़

बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई

अरशद अली ख़ान क़लक़

आश्ना होते ही उस इश्क़ ने मारा मुझ को

अरशद अली ख़ान क़लक़

आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब

अरशद अली ख़ान क़लक़

मिरे ख़ेमे ख़स्ता-हाल में हैं मिरे रस्ते धुँद के जाल में हैं

अरशद अब्दुल हमीद

मेहर ओ महताब को मेरे ही निशाँ जानती है

अरशद अब्दुल हमीद

जिंस-ए-मख़लूत हैं और अपने ही आज़ार में हैं

अरशद अब्दुल हमीद

मैं पैरवी-ए-अहल-ए-सियासत नहीं करता

अर्श सिद्दीक़ी

देख रह जाए न तू ख़्वाहिश के गुम्बद में असीर

अर्श सिद्दीक़ी

वक़्त का झोंका जो सब पत्ते उड़ा कर ले गया

अर्श सिद्दीक़ी

दरवाज़ा तिरे शहर का वा चाहिए मुझ को

अर्श सिद्दीक़ी

बंद आँखों से न हुस्न-ए-शब का अंदाज़ा लगा

अर्श सिद्दीक़ी

ये आइना था मगर ग़म की रहगुज़ार में था

अर्श सहबाई

'अर्श' किस दोस्त को अपना समझूँ

अर्श मलसियानी

मेरे प्यारे वतन

अर्श मलसियानी

मैं क्यूँ भूल जाऊँ

अर्श मलसियानी

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