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Collection: सबसे Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 86 - Darsaal

सबसे Poetry (page 86)

कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर

भारत भूषण पन्त

दीद की तमन्ना में आँख भर के रोए थे

भारत भूषण पन्त

चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

भारत भूषण पन्त

अंधेरा मिटता नहीं है मिटाना पड़ता है

भारत भूषण पन्त

आब की तासीर में हूँ प्यास की शिद्दत में हूँ

भारत भूषण पन्त

आज खेलेंगे मिरे ख़ून से होली सब लोग

बेताब सूरी

आज मक़्तल में ख़बर है कि चराग़ाँ होगा

बेताब सूरी

वो और तसल्ली मुझे दें उन की बला दे

बेख़ुद देहलवी

रात भर गर्दिश थी उन के पासबानों की तरह

बेख़ुद देहलवी

माशूक़ हमें बात का पूरा नहीं मिलता

बेख़ुद देहलवी

ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले

बेख़ुद देहलवी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है

बेख़ुद देहलवी

आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप

बेख़ुद देहलवी

उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं

बेकल उत्साही

जब कूचा-ए-क़ातिल में हम लाए गए होंगे

बेकल उत्साही

हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे

बेकल उत्साही

दिल मेरा तेरा ताब-ए-फ़रमाँ है क्या करूँ

बहज़ाद लखनवी

कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं

बेदम शाह वारसी

ये ख़ुसरवी-ओ-शौकत-ए-शाहाना मुबारक

बेदम शाह वारसी

तेरी उल्फ़त शोबदा-पर्वाज़ है

बेदम शाह वारसी

शादी ओ अलम सब से हासिल है सुबुकदोशी

बेदम शाह वारसी

क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है

बेदम शाह वारसी

क्या गिला इस का जो मेरा दिल गया

बेदम शाह वारसी

कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशाना तिरा और जल्वा-ख़ाना तिरा

बेदम शाह वारसी

बताए देती है बे-पूछे राज़ सब दिल के

बेदम शाह वारसी

अगर काबा का रुख़ भी जानिब-ए-मय-ख़ाना हो जाए

बेदम शाह वारसी

सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था

बयान मेरठी

ये ख़ूब-रू न छुरी ने कटार रखते हैं

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

कहता है कौन हिज्र मुझे सुब्ह ओ शाम हो

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

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