सबसे Poetry (page 72)
दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए
ग़ालिब
बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए
ग़ालिब
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
ग़ालिब
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ग़ालिब
है तलाश-ए-दो-जहाँ लेकिन ख़बर अपनी किसे
जोर्ज पेश शोर
इक ख़याल-ओ-ख़्वाब है ए 'शोर' ये बज़्म-ए-जहाँ
जोर्ज पेश शोर
दिल में अपने आरज़ू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं
जोर्ज पेश शोर
तुम आओगे
गीताञ्जलि राय
नदी
गीताञ्जलि राय
किराया-दार
गीताञ्जलि राय
ये महल ये माल ओ दौलत सब यहीं रह जाएँगे
गणेश बिहारी तर्ज़
कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच
गणेश बिहारी तर्ज़
जिस्म तो मिट्टी में मिलता है यहीं मरने के बाद
गणेश बिहारी तर्ज़
सदाक़तों के दहकते शोलों पे मुद्दतों तक चला किए हम
फ़ुज़ैल जाफ़री
छू भी तो नहीं सकते हम मौज-ए-सबा बन कर
फ़ुज़ैल जाफ़री
चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए
फ़ुज़ैल जाफ़री
कुत्तों का मुशाएरा
फ़ुर्क़त काकोरवी
फैमली-प्लैनिंग
फ़ुर्क़त काकोरवी
हो गए यार पराए अपने
फ़ीरोज़ा ख़ुसरो
न में यक़ीन में रख्खूँ न तो गुमान में रख
फ़िरदौस गयावी
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
शाम-ए-अयादत
फ़िराक़ गोरखपुरी
परछाइयाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
जुगनू
फ़िराक़ गोरखपुरी
हिण्डोला
फ़िराक़ गोरखपुरी
ज़िंदगी दर्द की कहानी है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था
फ़िराक़ गोरखपुरी
तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात
फ़िराक़ गोरखपुरी
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