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Collection: सबसे Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 70 - Darsaal

सबसे Poetry (page 70)

बात कुछ भी न थी फ़साना हुआ

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

नज़्म

गोपाल मित्तल

एक नज़्म

गोपाल मित्तल

क्या बताऊँ आज वो मुझ से जुदा क्यूँकर हुआ

गोपाल कृष्णा शफ़क़

ठहर ठहर के मिरा इंतिज़ार करता चल

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ताबीरों से बंद क़बा-ए-ख़्वाब खुले

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

आगे आगे शर फैलाता जाता हूँ

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मुझ को ग़रीब और क़रज़-दार देख कर

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

वक़्त से हम गिला नहीं करते

ग़ुला मोहम्मद सफ़ीर

सब से अच्छा कह के उस ने मुझ को रुख़्सत कर दिया

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ज़ेहन में दाएरे से बनाता रहा दूर ही दूर से मुस्कुराता रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सोए हुए जज़्बों को जगाना ही नहीं था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

रात उस के सामने मेरे सिवा भी मैं ही था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर तो इस बे-नाम सफ़र में कुछ भी न अपने पास रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ख़्वाब कहाँ से टूटा है ताबीर से पूछते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बयाबाँ दूर तक मैं ने सजाया था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बन से फ़सील-ए-शहर तक कोई सवार भी नहीं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे

ग़ुलाम मौला क़लक़

मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

दूरी में क्यूँ कि हो न तमन्ना हुज़ूर की

ग़ुलाम मौला क़लक़

दीदा-ए-सर्फ़-ए-इंतिज़ार है शम्अ

ग़ुलाम मौला क़लक़

चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'

ग़ुलाम मौला क़लक़

ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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