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Collection: सबसे Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 60 - Darsaal

सबसे Poetry (page 60)

ये क़र्ज़-ए-कज-कुलही कब तलक अदा होगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये मो'जिज़ा भी किसी की दुआ का लगता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सितारा-वार जले फिर बुझा दिए गए हम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

समुंदर इस क़दर शोरीदा-सर क्यूँ लग रहा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सजल कि शोर ज़मीनों में आशियाना करे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कुछ भी नहीं कहीं नहीं ख़्वाब के इख़्तियार में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दयार-ए-नूर में तीरा-शबों का साथी हो

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बिखर जाएँगे हम क्या जब तमाशा ख़त्म होगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दुनिया

इफ़्तिख़ार आज़मी

ख़्वाब आँखों से ज़बाँ से हर कहानी ले गया

इफ़्फ़त ज़र्रीं

नज़र जो आया उस पे ए'तिबार कर लिया गया

इफ़्फ़त अब्बास

मिरी मोहब्बत की बे-ख़ुदी को तलाश-ए-हक़्क़-ए-जलाल देना

इफ़्फ़त अब्बास

वही न हो कि ये सब लोग साँस लेने लगें

इदरीस बाबर

मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था

इदरीस बाबर

मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है

इदरीस बाबर

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

इदरीस बाबर

गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर

इदरीस बाबर

देखा नहीं चाँद ने पलट कर

इदरीस बाबर

ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए

इबरत मछलीशहरी

अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया

इबरत मछलीशहरी

सुकूँ-परवर है जज़्बाती नहीं है

इबरत बहराईची

शीशे का आदमी हूँ मिरी ज़िंदगी है क्या

इब्राहीम अश्क

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