सबसे Poetry (page 118)
गिर पड़ा तू आख़िरी ज़ीने को छू कर किस लिए
अफ़ज़ल मिनहास
एक पैकर यूँ चमक उट्ठा है मेरे ध्यान में
अफ़ज़ल मिनहास
आज ही फ़ुर्सत से कल का मसअला छेड़ूँगा मैं
अफ़ज़ल ख़ान
ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ
अफ़ज़ल इलाहाबादी
तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं
अफ़ज़ल इलाहाबादी
अश्क आँखों में लिए आठों पहर देखेगा कौन
अफ़ज़ल इलाहाबादी
किताब-ए-उम्र से सब हर्फ़ उड़ गए मेरे
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
क्या आग सब से अच्छी ख़रीदार है
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ये नहर-ए-आब भी उस की है मुल्क-ए-शाम उस का
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
दुआ की राख पे मरमर का इत्र-दाँ उस का
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
नाम अपना ही मैं सब से खड़ा पूछ रहा था
आफ़ताब शम्सी
यादें
आफ़ताब शम्सी
वापसी
आफ़ताब शम्सी
आख़िरी सफ़र
आफ़ताब शम्सी
टूटा हुआ आईना जो रस्ते में पड़ा था
आफ़ताब शम्सी
तलाश-ए-क़ाफ़िया में उम्र सब गुज़ारी है
आफ़ताब शम्सी
जब वो नज़रें दो-चार होती हैं
आफ़ताब शाह आलम सानी
देखो तो किस अदा से रुख़ पर हैं डाली ज़ुल्फ़ें
आफ़ताब शाह आलम सानी
आजिज़ हूँ तिरे हाथ से क्या काम करूँ मैं
आफ़ताब शाह आलम सानी
हाँ उसी दिन धूप में हरियालियाँ शामिल हुईं
आफ़ताब इक़बाल शमीम
हाल हमारा पूछने वाले
आफ़ताब हुसैन
मक़ाम-ए-शौक़ से आगे भी इक रस्ता निकलता है
आफ़ताब हुसैन
कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ
आफ़ताब हुसैन
दिल भी आप को भूल चुका है
आफ़ताब हुसैन
अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं
आफ़ताब हुसैन
प्यासी हैं रगें जिस्म को ख़ूँ मिल नहीं सकता
आफ़ताब आरिफ़
वतन का राग
अफ़सर मेरठी
आग़ाज़ हुआ है उल्फ़त का अब देखिए क्या क्या होना है
अफ़सर मेरठी
वो हमारी सम्त अपना रुख़ बदलता क्यूँ नहीं
अफ़सर माहपुरी
ग़म-ए-हयात के पेश-ओ-अक़ब नहीं पढ़ता
अफ़सर माहपुरी
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