सबसे Poetry (page 115)
मुदावा हब्स का होने लगा आहिस्ता आहिस्ता
अहमद नदीम क़ासमी
मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ
अहमद नदीम क़ासमी
दावा तो किया हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ का सब ने
अहमद नदीम क़ासमी
यार सब जम्अ हुए रात की ख़ामोशी में
अहमद मुश्ताक़
कैसे आ सकती है ऐसी दिल-नशीं दुनिया को मौत
अहमद मुश्ताक़
इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे
अहमद मुश्ताक़
दिल भर आया काग़ज़-ए-ख़ाली की सूरत देख कर
अहमद मुश्ताक़
ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे
अहमद मुश्ताक़
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है
अहमद मुश्ताक़
मिल ही आते हैं उसे ऐसा भी क्या हो जाएगा
अहमद मुश्ताक़
ख़्वाब के फूलों की ताबीरें कहानी हो गईं
अहमद मुश्ताक़
हमें सब अहल-ए-हवस ना-पसंद रखते हैं
अहमद मुश्ताक़
इक फूल मेरे पास था इक शम्अ' मेरे साथ थी
अहमद मुश्ताक़
धड़कती रहती है दिल में तलब कोई न कोई
अहमद मुश्ताक़
चाँद इस घर के दरीचों के बराबर आया
अहमद मुश्ताक़
अब न बहल सकेगा दिल अब न दिए जलाइए
अहमद मुश्ताक़
अब न बहल सकेगा दिल अब न दिए जलाइए
अहमद मुश्ताक़
यहीं गुम हुआ था कई बार मैं
अहमद महफ़ूज़
ये जो धुआँ धुआँ सा है दश्त-ए-गुमाँ के आस-पास
अहमद महफ़ूज़
रक़्स-ए-शरर क्या अब के वहशत-नाक हुआ
अहमद महफ़ूज़
छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ
अहमद महफ़ूज़
बदन-सराब न दरिया-ए-जाँ से मिलता है
अहमद महफ़ूज़
अंधेरा सा क्या था उबलता हुआ
अहमद महफ़ूज़
अब इस मकाँ में नया कोई दर नहीं करना
अहमद महफ़ूज़
मिट्टी से बग़ावत न बग़ावत से गुरेज़ाँ
अहमद कामरान
ये गर्म रेत ये सहरा निभा के चलना है
अहमद कमाल परवाज़ी
तमाम भीड़ से आगे निकल के देखते हैं
अहमद कमाल परवाज़ी
कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है
अहमद कमाल परवाज़ी
यही दिल जो इक बूँद है बहर-ए-ग़म की
अहमद जावेद
सबा देख इक दिन इधर आन कर के
अहमद जावेद
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