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Collection: सबसे Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 112 - Darsaal

सबसे Poetry (page 112)

बर्क़-ए-कलीसा

अकबर इलाहाबादी

ये सुस्त है तो फिर क्या वो तेज़ है तो फिर क्या

अकबर इलाहाबादी

वज़्न अब उन का मुअ'य्यन नहीं हो सकता कुछ

अकबर इलाहाबादी

तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है

अकबर इलाहाबादी

नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की

अकबर इलाहाबादी

मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर

अकबर इलाहाबादी

मज़हब का हो क्यूँकर इल्म-ओ-अमल दिल ही नहीं भाई एक तरफ़

अकबर इलाहाबादी

ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है

अकबर इलाहाबादी

ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे

अकबर इलाहाबादी

कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है

अकबर इलाहाबादी

जहाँ में हाल मिरा इस क़दर ज़बून हुआ

अकबर इलाहाबादी

जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया

अकबर इलाहाबादी

इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा

अकबर इलाहाबादी

हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए

अकबर इलाहाबादी

हर इक ये कहता है अब कार-ए-दीं तो कुछ भी नहीं

अकबर इलाहाबादी

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है

अकबर इलाहाबादी

हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के

अकबर इलाहाबादी

गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन

अकबर इलाहाबादी

फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं

अकबर इलाहाबादी

दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी

अकबर इलाहाबादी

चर्ख़ से कुछ उमीद थी ही नहीं

अकबर इलाहाबादी

ये शौक़ सारे यक़ीन-ओ-गुमाँ से पहले था

अकबर अली खान अर्शी जादह

तुम्हारे दिल की तरह ये ज़मीन तंग नहीं

अकबर अली खान अर्शी जादह

सिखा सकी न जो आदाब-ए-मय वो ख़ू क्या थी

अकबर अली खान अर्शी जादह

और तो ख़ैर क्या रह गया

अजमल सिराज

बोल पड़ता तो मिरी बात मिरी ही रहती

अजमल सिद्दीक़ी

आस पे तेरी बिखरा देता हूँ कमरे की सब चीज़ें

अजमल सिद्दीक़ी

ज़िंदगी रोज़ बनाती है बहाने क्या क्या

अजमल सिद्दीक़ी

ख़त जो तेरे नाम लिखा, तकिए के नीचे रखता हूँ

अजमल सिद्दीक़ी

दुखे दिलों पे जो पड़ जाए वो तबीब नज़र

अजमल सिद्दीक़ी

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