साथ Poetry (page 37)
आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
सईद राही
मैं दोस्त से न किसी दुश्मनी से डरता हूँ
सईद नक़वी
इब्तिदा मुझ में इंतिहा मुझ में
सईद नक़वी
हम भी उसी के साथ गए होश से 'सईद'
सईद अहमद
हम ज़ात से हम कलामी और फ़िराक़
सईद अहमद
होने की इक झलक सी दिखा कर चला गया
सईद अहमद
मैं ने कहा कि घर चलेगी मेरे साथ आज
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़
तिरी गाली मुझ दिल को प्यारी लगे
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़
मुँह फूल से रंगीं था व सारी थी उस हरी
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़
ये क्या हुआ कि हर इक रस्म-ओ-राह तोड़ गए
सादिक़ इंदौरी
गुज़रे हैं तेरे साथ जो दिन-रात अभी तक
सादिक़ा फ़ातिमी
बचपन की आँखें
सादिक़
वो चीर के आकाश ज़मीं पर उतर आया
सादिक़
मुँह आँसुओं से अपना अबस धो रहे हो क्यूँ
सादिक़
वक़्त के साथ 'सदा' बदले तअल्लुक़ कितने
सदा अम्बालवी
शेर में साथ रवानी के मआनी भी तो भर
सदा अम्बालवी
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
सदा अम्बालवी
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
सदा अम्बालवी
ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे
सदा अम्बालवी
यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई
सदा अम्बालवी
मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया
सदा अम्बालवी
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
सदा अम्बालवी
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
सदा अम्बालवी
गुज़ारता हूँ जो शब इश्क़-ए-बे-मआश के साथ
साबिर ज़फ़र
यहाँ जो पेड़ थे अपनी जड़ों को छोड़ चुके
साबिर ज़फ़र
वो नींद अधूरी थी क्या ख़्वाब-ए-ना-तमाम था क्या
साबिर ज़फ़र
वो नींद अधूरी थी क्या ख़्वाब ना-तमाम था क्या
साबिर ज़फ़र
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
साबिर ज़फ़र
मैं जिस के साथ 'ज़फ़र' उम्र भर उठा बैठा
साबिर ज़फ़र
महसूस लम्स जिस का सर-ए-रह-गुज़र किया
साबिर ज़फ़र
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