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Collection: साथ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 30 - Darsaal

साथ Poetry (page 30)

बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ

मोहम्मद रफ़ी सौदा

अपने का है गुनाह बेगाने ने क्या किया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

इश्क़ सामान भी है बे-सर-ओ-सामानी भी

सऊद उस्मानी

अजीब ढंग से मैं ने यहाँ गुज़ारा किया

सऊद उस्मानी

अगला सफ़र तवील नहीं

सत्यपाल आनंद

शहर-ए-दिल सुलगा तो आहों का धुआँ छाने लगा

सत्य नन्द जावा

कहाँ कहाँ से निगह उस को ढूँड लाए है

सत्य नन्द जावा

सहर को साथ उड़ा ले गई सबा जैसे

सत्तार सय्यद

वही है दश्त-ए-सफ़र रहगुज़र से आगे भी

सत्तार सय्यद

शिकोह-ए-आब में गुम थे जिहत-निशाँ मेरे

सत्तार सय्यद

पस-ए-आइना ख़द-ओ-ख़ाल में कोई और था

सत्तार सय्यद

बस एक बार याद ने तुम्हारा साथ छू लिया

सरवत ज़ेहरा

साए का इज़्तिराब

सरवत ज़ेहरा

हर एक ख़्वाब सो गया ख़याल जागते रहे

सरवत ज़ेहरा

बे-तहाशा उसे सोचा जाए

सरवत ज़ेहरा

मोहब्बत में कोई तन्हा सफ़र अच्छा नहीं लगता

सरवर नेपाली

बातों से सितमगर मुझे बहलाता रहा वो

सरवर मजाज़

मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते पर

सरवत हुसैन

बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ी

सरवत हुसैन

सुब्ह होते ही

सरवत हुसैन

''एक नज़्म कहीं से भी शुरूअ हो सकती है''

सरवत हुसैन

दरख़्त मेरे दोस्त

सरवत हुसैन

ये होंट तिरे रेशम ऐसे

सरवत हुसैन

वहीं पर मिरा सीम-तन भी तो है

सरवत हुसैन

लहर-लहर आवारगियों के साथ रहा

सरवत हुसैन

कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया

सरवत हुसैन

हाँ मेरी महबूबा

सरमद सहबाई

रौशनी रंगों में सिमटा हुआ धोका ही न हो

सरमद सहबाई

नज़र की धूप में आने से पहले

सरफ़राज़ ज़ाहिद

नज़र की धूप में आने से पहले

सरफ़राज़ ज़ाहिद

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