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Collection: साथ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 21 - Darsaal

साथ Poetry (page 21)

निगह का वार था दिल पर फड़कने जान लगी

ज़ौक़

नहीं सबात बुलंदी-ए-इज्ज़-ओ-शाँ के लिए

ज़ौक़

न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से

ज़ौक़

लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले

ज़ौक़

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले

ज़ौक़

किसी बेकस को ऐ बेदाद गर मारा तो क्या मारा

ज़ौक़

कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिज्राँ छोड़ कर

ज़ौक़

दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे

ज़ौक़

दरिया-ए-अश्क चश्म से जिस आन बह गया

ज़ौक़

आते ही तू ने घर के फिर जाने की सुनाई

ज़ौक़

फ़स्ल-ए-गुल साथ लिए बाग़ में क्या आती है

शैख़ अली बख़्श बीमार

चाँदनी अपने साथ लाई है

शहज़ाद रज़ा लम्स

मेरी नज़र का मुद्दआ उस के सिवा कुछ भी नहीं

शहपर रसूल

था ग़ैर का जो रंज-ए-जुदाई तमाम शब

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

कम-फ़हम हैं तो कम हैं परेशानियों में हम

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

रक़ाबतों की तरह से हम ने मोहब्बतें बे-मिसाल की हैं

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

किसी के साथ अब साया नहीं है

शीन काफ़ निज़ाम

किसी के साथ अब साया नहीं है

शीन काफ़ निज़ाम

ज़मीं का क़र्ज़

शाज़ तमकनत

ज़रा सी बात थी बात आ गई जुदाई तक

शाज़ तमकनत

सिमट सिमट सी गई थी ज़मीं किधर जाता

शाज़ तमकनत

जाने वाले तुझे कब देख सकूँ बार-ए-दिगर

शाज़ तमकनत

छोड़ दूँ शहर तिरा छोड़ दूँ दुनिया तेरी

शाज़ तमकनत

रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर

शौक़ क़िदवाई

रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर

शौक़ क़िदवाई

मारे ग़ुस्से के ग़ज़ब की ताब रुख़्सारों में है

शौक़ क़िदवाई

जफ़ा पे शुक्र का उम्मीद-वार क्यूँ आया

शौक़ क़िदवाई

ज़ुल्फ़-ए-दराज़ से ये नुमायाँ है ग़ालिबन

शौक़ बहराइची

राज़ में रक्खेंगे हम तेरी क़सम ऐ नासेह

शौक़ बहराइची

'शौकत' हमारे साथ बड़ा हादिसा हुआ

शाैकत वास्ती

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