वर्ष Poetry (page 11)
आज फिर आईना देखा है कई साल के बाद
फ़ैसल अजमी
शामियानों की वज़ाहत तो नहीं की गई है
फ़ैसल अजमी
इंक़िलाबी औरत
फ़हमीदा रियाज़
सब्ज़ रुतों में क़दीम घरों की ख़ुशबू
फ़हीम शनास काज़मी
निशान-ए-ज़िंदगी
एजाज़ गुल
अपना अपना रंग
एजाज़ फ़ारूक़ी
तन्हाई का रोग न पाल
एजाज़ तालिब
लग गए हैं फ़ोन लगने में जो पच्चीस साल
दिलावर फ़िगार
कराची की बस
दिलावर फ़िगार
देखते देखते ही साल गुज़र जाता है
धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़
विर्सा
दाऊद ग़ाज़ी
जब सर-ए-बाम वो ख़ुर्शीद-जमाल आता है
चरख़ चिन्योटी
रामायण का एक सीन
चकबस्त ब्रिज नारायण
कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में
चकबस्त ब्रिज नारायण
उन्हें ढूँडो
बुशरा एजाज़
ऐसे में रोज़ रोज़ कोई ढूँडता मुझे
बिमल कृष्ण अश्क
किरन में फिर से बदलने लगा ख़याल उस का
बेदार सरमदी
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
बशीर बद्र
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
बशीर बद्र
इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं
बशीर बद्र
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
बशीर बद्र
उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है
बशीर बद्र
सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे
बशीर बद्र
सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
बशीर बद्र
पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है
बशीर बद्र
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बशीर बद्र
हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी
बशीर बद्र
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
बशीर बद्र
या मह-ओ-साल की दीवार गिरा दी जाए
बशीर अहमद बशीर
तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा
बाक़ी अहमदपुरी
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