समुद्र Poetry (page 18)
रह-ए-शौक़ से अब हटा चाहता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता
असरार-उल-हक़ मजाज़
करिश्मा-साजी-ए-दिल देखता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
जिगर और दिल को बचाना भी है
असरार-उल-हक़ मजाज़
रात फिर ख़्वाब में आने का इरादा कर के
असरा रिज़वी
नर्म आवाज़ों के बीच
असलम इमादी
रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूँ नहीं
असलम आज़ाद
एक नज़्म
असलम अंसारी
हर तरफ़ हद्द-ए-नज़र तक सिलसिला पानी का है
आसिम वास्ती
तख़्लीक़
आसिफ़ रज़ा
चाँद तारों से भरा ये आसमाँ दे जाऊँगा
अशरफ़ शाद
मैं सोचता तो हूँ लेकिन ये बात किस से कहूँ
अशफ़ाक़ अंजुम
हम तह-ए-दरिया तिलिस्मी बस्तियाँ गिनते रहे
अशअर नजमी
अंधेरे में तजस्सुस का तक़ाज़ा छोड़ जाना है
अशअर नजमी
मुझे एक दिन चाहिए
असग़र नदीम सय्यद
डूबने वाले को साहिल से सदाएँ मत दो
असग़र मेहदी होश
सराए
असग़र मेहदी होश
जो सज़ा चाहो मोहब्बत से दो यारो मुझ को
असग़र मेहदी होश
बाहर का माहौल तो हम को अक्सर अच्छा लगता है
असग़र मेहदी होश
मता-ए-ज़ीस्त क्या हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं
असग़र गोंडवी
इलाही कश्ती-ए-दिल बह रही है किस समुंदर में
असर सहबाई
मिरी हर साँस को सब नग़्मा-ए-महफ़िल समझते हैं
असर सहबाई
आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे
असर लखनवी
ख़याल यार मुझे जब लहू रुलाने लगा
असद जाफ़री
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
आरज़ू लखनवी
क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता
आरज़ू लखनवी
दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया
आरज़ू लखनवी
ऐ जज़्ब-ए-मोहब्बत तू ही बता क्यूँकर न असर ले दिल ही तो है
आरज़ू लखनवी
समुंदर से किसी लम्हे भी तुग़्यानी नहीं जाती
अरशद कमाल
क्या कहूँ कितना फ़ुज़ूँ है तेरे दीवाने का दुख
अरशद जमाल 'सारिम'
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