समुद्र Poetry (page 13)
चाँद कोहरे के जज़ीरों में भटकता होगा
हामिदी काश्मीरी
रात
हमीदा शाहीन
ये अब के कैसी मुश्किल हो गई है
हामिद कशमीरी
मोहब्बत जादा है मंज़िल नहीं है
हमीद नसीम
किस वहम में असीर तिरे मुब्तला हुए
हमीद जालंधरी
तिश्ना-ए-अज़ली
हमीद अलमास
बहर-ए-हस्ती सा कोई दरिया-ए-बे-पायाँ नहीं
हैदर अली आतिश
मिरे ऐबों की इस्लाहें हुआ कीं बहस-ए-दुश्मन से
हफ़ीज़ जौनपुरी
आने वाले किसी तूफ़ान का रोना रो कर
हफ़ीज़ जालंधरी
क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा
हफ़ीज़ जालंधरी
इश्क़ ने हुस्न की बे-दाद पे रोना चाहा
हफ़ीज़ जालंधरी
जब भी तिरी यादों की चलने लगी पुर्वाई
हफ़ीज़ बनारसी
अब वो पीरी में कहाँ अहद-ए-जवानी की उमंग
हादी मछलीशहरी
दर्द सा उठ के न रह जाए कहीं दिल के क़रीब
हादी मछलीशहरी
कौन बताए कौन सुझाए कौन से देस सिधार गए
हबीब जालिब
लब-ए-जाँ-बख़्श तक जा कर रहे महरूम बोसा से
हबीब मूसवी
याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
हबीब आरवी
शफ़क़
गुलज़ार
रूह देखी है कभी!
गुलज़ार
लैंडस्केप
गुलज़ार
किनारे पर कोई आया था
गुलज़ार
पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं
गुलज़ार
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
गुलज़ार
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
गुलज़ार
आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
वरक़ वरक़ जो ज़माने के शाहकार में था
गुहर खैराबादी
ग़म नहीं जो लुट गए हम आ के मंज़िल के क़रीब
गुहर खैराबादी
किस को है हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद का दावा देखें
गोपाल मित्तल
कैसा इंसाँ तरस रहा है जीने को
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
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