रास्ता Poetry (page 11)
जले चराग़ बुझाने की ज़िद नहीं करते
चाँदनी पांडे
शिकन-अंदर-शिकन याद आ गया है
बुशरा ज़ैदी
ये शहर-ए-ना-रसाई है
बुशरा एजाज़
उन्हें ढूँडो
बुशरा एजाज़
मैं जब ख़ुद से बिछड़ती हूँ
बुशरा एजाज़
सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को
बिस्मिल अज़ीमाबादी
मेरी एक बुरी आदत थी
बिलाल अहमद
अब तो इतनी बार हम रस्ते में ठोकर खा चुके
भारत भूषण पन्त
आँखों में एक बार उभरने की देर थी
भारत भूषण पन्त
क़ुर्बतें नहीं रक्खीं फ़ासला नहीं रक्खा
भारत भूषण पन्त
इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को
भारत भूषण पन्त
मेरे हम-राह मिरे घर पे भी आफ़त आई
बेख़ुद देहलवी
ये जो चेहरों पे लिए गर्द-ए-अलम आते हैं
बेदिल हैदरी
कभी दर पर कभी है रस्ते में
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
लड़ ही जाए किसी निगार से आँख
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
बशीर बद्र
इन चटख़्ते पत्थरों पर पाँव धरना ध्यान से
बशीर अहमद बशीर
क्या क्या लोग ख़ुशी से अपनी बिकने पर तय्यार हुए
बशर नवाज़
वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं
बाक़ी सिद्दीक़ी
तुम कब थे क़रीब इतने मैं कब दूर रहा हूँ
बाक़ी सिद्दीक़ी
बहुत जल्दी थी घर जाने की लेकिन
बाक़ी अहमदपुरी
दीमक
बाक़र मेहदी
हर कूचे में अरमानों का ख़ून हुआ
बक़ा बलूच
कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में
बक़ा बलूच
मुझ को नहीं मालूम कि वो कौन है क्या है
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए
अज़्म बहज़ाद
मैं उम्र के रस्ते में चुप-चाप बिखर जाता
अज़्म बहज़ाद
वो दुख नसीब हुए ख़ुद-कफ़ील होने में
अज़ीज़ नबील
बैठो जी का बोझ उतारें दोनों वक़्त यहीं मिलते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
बैठो जी का बोझ उतारें दोनों वक़्त यहीं मिलते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
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