रंग Poetry (page 75)
इंक़लाब
असरार-उल-हक़ मजाज़
एक दोस्त की ख़ुश-मज़ाक़ी पर
असरार-उल-हक़ मजाज़
दिल्ली से वापसी
असरार-उल-हक़ मजाज़
अयादत
असरार-उल-हक़ मजाज़
आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
ये जहाँ बारगह-ए-रित्ल-ए-गिराँ है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
साक़ी-ए-गुलफ़ाम बा-सद एहतिमाम आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
करिश्मा-साजी-ए-दिल देखता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
अक़्ल की सतह से कुछ और उभर जाना था
असरार-उल-हक़ मजाज़
आसमाँ तक जो नाला पहुँचा है
असरार-उल-हक़ मजाज़
कैसे रफ़ू हों चाक-ए-गरेबाँ मैं भी सोचूँ तू भी सोच
असरारुल हक़ असरार
पहचान ज़िंदगी की समझ कर मैं चुप रहा
असरार अकबराबादी
फ़न अस्ल में पिन्हाँ है दिल-ए-ज़ार के अंदर
असरार अकबराबादी
दो-जहाँ के हुस्न का अरमान आधा रह गया
असरार अकबराबादी
आओ चलें उस खंडर में
असरा रिज़वी
ज़िंदगी उलझी है बिखरे हुए गेसू की तरह
असरा रिज़वी
रुक गया आ के जहाँ क़ाफ़िला-ए-रंग-ओ-नशात
असलम महमूद
मिरी कहानी रक़म हुई है हवा के औराक़-ए-मुंतशिर पर
असलम महमूद
बे-रंग न वापस कर इक संग ही दे सर को
असलम महमूद
रंग सारे अपने अंदर रफ़्तगाँ के हैं
असलम महमूद
न मलाल-ए-हिज्र न मुंतज़िर हैं हवा-ए-शाम-ए-विसाल के
असलम महमूद
मिज़ा पे ख़्वाब नहीं इंतिज़ार सा कुछ है
असलम महमूद
मैं हज्व इक अपने हर क़सीदे की रद में तहरीर कर रहा हूँ
असलम महमूद
क्यूँ मुझ से गुरेज़ाँ है मैं तेरा मुक़द्दर हूँ
असलम महमूद
जल रहा हूँ तो अजब रंग ओ समाँ है मेरा
असलम महमूद
हर रंग-ए-तरब मौसम ओ मंज़र से निकाला
असलम महमूद
बुझ गए मंज़र उफ़ुक़ पर हर निशाँ मद्धम हुआ
असलम महमूद
दोस्ती को आम करना चाहता है
असलम हबीब
धनक की बूँद
असलम फ़र्रुख़ी
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