रंग Poetry (page 66)
हुस्न इस शम्अ-रू का है गुल-रंग
दाऊद औरंगाबादी
गुलशन-ए-जग में ज़रा रंग-ए-मोहब्बत नीं है
दाऊद औरंगाबादी
दिल में ख़याल-ए-यार है जासूस की नमत
दाऊद औरंगाबादी
दर्पन दिया हूँ दिल का मैं उस दिलरुबा के हाथ
दाऊद औरंगाबादी
या इलाही मुझ को ये क्या हो गया
दत्तात्रिया कैफ़ी
सूरत-ए-हाल अब तो वो नक़्श-ए-ख़याली हो गया
दत्तात्रिया कैफ़ी
पर्दा-दार हस्ती थी ज़ात के समुंदर में
दत्तात्रिया कैफ़ी
ढूँढने से यूँ तो इस दुनिया में क्या मिलता नहीं
दत्तात्रिया कैफ़ी
काश
दर्शिका वसानी
तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन
दर्शन सिंह
राज़-ए-निहाँ थी ज़िंदगी राज़-ए-निहाँ है आज भी
दर्शन सिंह
किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई
दर्शन सिंह
ने गुल को है सबात न हम को है ए'तिबार
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
मिरा जी है जब तक तिरी जुस्तुजू है
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
एक बे-चेहरा मुसाफ़िर रंग ओढ़े
दानियाल तरीर
नई नई सूरतें बदन पर उजालता हूँ
दानियाल तरीर
बिला-जवाज़ नहीं है फ़लक से जंग मिरी
दानियाल तरीर
अजब रंग-ए-तिलस्म-ओ-तर्ज़-ए-नौ है
दानियाल तरीर
आग में जलते हुए देखा गया है
दानियाल तरीर
कुछ अपने दौर की भी कहानी लिखा करो
दानिश फ़राही
हश्र इक गुज़रा है वीराने पे घर होने तक
दानिश फ़राही
'मीर' का रंग बरतना नहीं आसाँ ऐ 'दाग़'
दाग़ देहलवी
रंज की जब गुफ़्तुगू होने लगी
दाग़ देहलवी
कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए
दाग़ देहलवी
कहते हैं जिस को हूर वो इंसाँ तुम्हीं तो हो
दाग़ देहलवी
जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
जल्वे मिरी निगाह में कौन-ओ-मकाँ के हैं
दाग़ देहलवी
इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का
दाग़ देहलवी
हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से
दाग़ देहलवी
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