रंग Poetry (page 60)
कोई मंज़र भी सुहाना नहीं रहने देते
फ़ारिग़ बुख़ारी
देखा तुझे तो आँखों ने ऐवाँ सजा लिए
फ़ारिग़ बुख़ारी
अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ
फ़ारिग़ बुख़ारी
आँख को जकड़े थे कल ख़्वाब अज़ाबों के
फ़रहत शहज़ाद
जो तुझे पैकर-ए-सद-नाज़-ओ-अदा कहते हैं
फ़रहत नदीम हुमायूँ
'फ़रहत' तिरे नग़मों की वो शोहरत है जहाँ में
फ़रहत कानपुरी
तिरा जल्वा शाम-ओ-सहर देखते हैं
फ़रहत कानपुरी
मेरा दिल-ए-नाशाद जो नाशाद रहेगा
फ़रहत कानपुरी
आ मुझे छू के हरा रंग बिछा दे मुझ पर
फ़रहत एहसास
कूज़ा-गर
फ़रहत एहसास
दुनिया को कहाँ तक जाना है
फ़रहत एहसास
ज़मीं से अर्श तलक सिलसिला हमारा भी था
फ़रहत एहसास
वो महफ़िलें पुरानी अफ़्साना हो रही हैं
फ़रहत एहसास
सब मिरा आब-ए-रवाँ किस के इशारों पे बहा जाता है
फ़रहत एहसास
नहीं देखता दिन जिसे चश्म-ए-शब देखती है
फ़रहत एहसास
महफ़िल में अब के आओ तो ऐसी ख़ता न हो
फ़रहत एहसास
क्या बैठ जाएँ आन के नज़दीक आप के
फ़रहत एहसास
ख़ाना-साज़ उजाला मार
फ़रहत एहसास
खड़ी है रात अंधेरों का अज़दहाम लगाए
फ़रहत एहसास
जिस्म की क़ैद से सब रंग तुम्हारे निकल आए
फ़रहत एहसास
इक हवा आई है दीवार में दर करने को
फ़रहत एहसास
एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं
फ़रहत एहसास
बे-रंग बड़े शहर की हस्ती भी वहीं थी
फ़रहत एहसास
ब-रंग-ए-सब्ज़ा उन्ही साहिलों पे जम जाएँ
फ़रहत एहसास
बादल इस बार जो उस शहर पे छाए हुए हैं
फ़रहत एहसास
शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ
फ़रहान सालिम
सिकंदर हूँ तलाश-ए-आब-ए-हैवाँ रोज़ करता हूँ
फ़रीद परबती
तरब का रंग मोहब्बत की लौ नहीं देता
फ़रीद जावेद
ये कहाँ से मौज-ए-तरब उठी कि मलाल दिल से निकल गए
फ़रीद जावेद
ये कहाँ से मौज-ए-तरब उठी कि मलाल दिल से निकल गए
फ़रीद जावेद
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