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Collection: रहस्य Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 7 - Darsaal

रहस्य Poetry (page 7)

निगाह मुझ से मिलाने की उन में ताब नहीं

सिया सचदेव

यारब सराब-ए-अहल-ए-हवस से नजात दे

सिराजुद्दीन ज़फ़र

ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए

सिराज लखनवी

न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है

सिराज लखनवी

जलती रहना शम-ए-हयात

सिराज लखनवी

आँखों में आज आँसू फिर डबडबा रहे हैं

सिराज लखनवी

जानाँ पे जी निसार हुआ क्या बजा हुआ

सिराज औरंगाबादी

फिर सूरज ने शहर पे अपने क़हर का यूँ आग़ाज़ किया

सिराज अजमली

जलने में क्या लुत्फ़ है ये तो पूछो तुम परवाने से

सिकंदर हयात ख़याल

सफ़र की धूप ने चेहरा उजाल रक्खा था

सिदरा सहर इमरान

आग देखूँ कभी जलता हुआ बिस्तर देखूँ

सिद्दीक़ मुजीबी

मिरे दिल की अब ऐ अश्क-ए-नदामत शुस्त-ओ-शू कर दे

श्याम सुंदर लाल बर्क़

ख़ुदाया हिन्द का रौशन चराग़-ए-आरज़ू कर दे

श्याम सुंदर लाल बर्क़

जब समाअ'त ही न हो उस की तो है बेकार शरह

श्याम सुंदर लाल बर्क़

रुका तो राज़ खुला कब से अपने घर में था

शुजाअत अली राही

बहता है कोई ग़म का समुंदर मिरे अंदर

शोज़ेब काशिर

मिल गया जब वो नगीं फिर ख़ूबी-ए-तक़दीर से

शोएब निज़ाम

न जब तक दर्द-ए-इंसाँ से किसी को आगही होगी

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

न है उस को मुझ से ग़फ़लत न वो ज़िम्मेदार कम है

शिफ़ा कजगावन्वी

मुस्लिम-लीग

शिबली नोमानी

तीर-ए-क़ातिल का ये एहसाँ रह गया

शिबली नोमानी

असर के पीछे दिल-ए-हज़ीं ने निशान छोड़ा न फिर कहीं का

शिबली नोमानी

हिजाब-ए-राज़ फ़ैज़-ए-मुर्शिद-ए-कामिल से उठता है

शेर सिंह नाज़ देहलवी

उस संग-ए-आस्ताँ पे जबीन-ए-नियाज़ है

ज़ौक़

महफ़िल में शोर-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना-ए-मुल हुआ

ज़ौक़

हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाएदार का

ज़ौक़

मस्लहत के ज़ावियों से किस क़दर अंजान है

शहपर रसूल

दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

सुख़न राज़-ए-नशात-ओ-ग़म का पर्दा हो ही जाता है

शाज़ तमकनत

दर-गुज़र

शाज़ तमकनत

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