रात Poetry (page 97)
फ़लक पे चाँद नहीं कोई अब्र-पारा नहीं
अहमद ज़फ़र
दिन हुआ कट कर गिरा मैं रौशनी की धार से
अहमद ज़फ़र
दर्द ठहरे तो ज़रा दिल से कोई बात करें
अहमद वसी
अपनी ही आवाज़ के क़द के बराबर हो गया
अहमद तनवीर
जिस्म भूका है तो है रूह भी प्यासी मेरी
अहमद शनास
मोहब्बतों को कहीं और पाल कर देखो
अहमद शनास
जिस्म के बयाबाँ में दर्द की दुआ माँगें
अहमद शनास
जुनूँ की रस्म ज़माने में आम हो न सकी
अहमद शाहिद ख़ाँ
कुचल कुचल के न फ़ुटपाथ को चलो इतना
अहमद सलमान
काली रात के सहराओं में नूर-सिपारा लिक्खा था
अहमद सलमान
जागती शब ख़ुदा-हाफ़िज़
अहमद सज्जाद बाबर
बात करने का नहीं सामने आने का नहीं
अहमद रिज़वान
दूर तेरी महफ़िल से रात दिन सुलगता हूँ
अहमद राही
ये दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल कहाँ कही जाए
अहमद राही
दिन को रहते झील पर दरिया किनारे रात को
अहमद राही
दिन गुज़रता है कहाँ रात कहाँ होती है
अहमद राही
दिल पे जब दर्द की उफ़्ताद पड़ी होती है
अहमद राही
आज की रात भी तन्हा ही कटी
अहमद नदीम क़ासमी
क़यामत
अहमद नदीम क़ासमी
गुनाह ओ सवाब
अहमद नदीम क़ासमी
अक़ीदे
अहमद नदीम क़ासमी
यूँ बे-कार न बैठो दिन भर यूँ पैहम आँसू न बहाओ
अहमद नदीम क़ासमी
शुऊर में कभी एहसास में बसाऊँ उसे
अहमद नदीम क़ासमी
फिर भयानक तीरगी में आ गए
अहमद नदीम क़ासमी
मुदावा हब्स का होने लगा आहिस्ता आहिस्ता
अहमद नदीम क़ासमी
मैं हूँ या तू है ख़ुद अपने से गुरेज़ाँ जैसे
अहमद नदीम क़ासमी
लब-ए-ख़ामोश से इफ़्शा होगा
अहमद नदीम क़ासमी
जी चाहता है फ़लक पे जाऊँ
अहमद नदीम क़ासमी
एहसास में फूल खिल रहे हैं
अहमद नदीम क़ासमी
बारिश की रुत थी रात थी पहलू-ए-यार था
अहमद नदीम क़ासमी
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