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Collection: रात Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 92 - Darsaal

रात Poetry (page 92)

एक खिड़की गली की खुली रात भर

अली अहमद जलीली

अँधेरी शब का ये ख़्वाब-मंज़र मुझे उजालों से भर रहा है

अलीना इतरत

ये किस मुहिम पर चले थे हम जिस में रास्ते पुर-ख़तर न आए

अलीना इतरत

ख़िज़ाँ की ज़र्द सी रंगत बदल भी सकती है

अलीना इतरत

इक मुंतज़िर-ए-वादा की शम्अ जली होगी

अलीम मसरूर

करना पड़ा था जिस के लिए ये सफ़र मुझे

अलीम अफ़सर

मैं जब भी घर से निकलता हूँ रात को तन्हा

आलमताब तिश्ना

सिवाए-दर-ब-दरी उस को ख़ाक मिलता है

आलमताब तिश्ना

असीर-ए-दश्त-ए-बला का न माजरा कहना

आलमताब तिश्ना

याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बा'द

आलम ख़ुर्शीद

सियाह रात के बदन पे दाग़ बन के रह गए

आलम ख़ुर्शीद

क़रार-ए-गुम-शुदा मेरे ख़ुदा कब आएगा

अकरम नक़्क़ाश

खुली और बंद आँखों से उसे तकता रहा मैं भी

अकरम नक़्क़ाश

दश्त को ढूँडने निकलूँ तो जज़ीरा निकले

अकरम नक़्क़ाश

चढ़े हुए हैं जो दरिया उतर भी जाएँगे

अकरम महमूद

यादें

अख़्तर-उल-ईमान

तर्ग़ीब और उस के ब'अद

अख़्तर-उल-ईमान

तन्हाई में

अख़्तर-उल-ईमान

सुकून

अख़्तर-उल-ईमान

सब्ज़ा-ए-बेगाना

अख़्तर-उल-ईमान

मताअ-ए-राएगाँ

अख़्तर-उल-ईमान

मस्जिद

अख़्तर-उल-ईमान

एक एहसास

अख़्तर-उल-ईमान

बुलावा

अख़्तर-उल-ईमान

ग़म का आहंग है

अख़्तर ज़ियाई

ऐ दुनिया तेरे रस्ते से हट जाएँगे

अख्तर शुमार

अभी दिल में गूँजती आहटें मिरे साथ हैं

अख्तर शुमार

इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा

अख़्तर शीरानी

दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी

अख़्तर शीरानी

ओ देस से आने वाले बता

अख़्तर शीरानी

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