रात Poetry (page 89)
जाने ये किस की बनाई हुई तस्वीरें हैं
अमीर क़ज़लबाश
आज की रात भी गुज़री है मिरी कल की तरह
अमीर क़ज़लबाश
तेरी मस्जिद में वाइज़ ख़ास हैं औक़ात रहमत के
अमीर मीनाई
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
अमीर मीनाई
वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है
अमीर मीनाई
न बेवफ़ाई का डर था न ग़म जुदाई का
अमीर मीनाई
गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी
अमीर मीनाई
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
अमीर मीनाई
बात करने में तो जाती है मुलाक़ात की रात
अमीर मीनाई
ये कार-ए-ज़िंदगी था तो करना पड़ा मुझे
अमीर इमाम
कभी तो बनते हुए और कभी बिगड़ते हुए
अमीर इमाम
हर एक शाम का मंज़र धुआँ उगलने लगा
अमीर इमाम
छुप जाता है फिर सूरज जिस वक़्त निकलता है
अमीर इमाम
बन के साया ही सही सात तो होती होगी
अमीर इमाम
अब इस जहान-ए-बरहना का इस्तिआरा हुआ
अमीर इमाम
उन आँखों में डाल कर जब आँखें उस रात
अमीक़ हनफ़ी
आता हूँ मैं ज़माने की आँखों में रात दिन
अमीक़ हनफ़ी
फूल खिले हैं लिखा हुआ है तोड़ो मत
अमीक़ हनफ़ी
लम्बी रात से जब मिली उस की ज़ुल्फ़-ए-दराज़
अमीक़ हनफ़ी
कहने को शम-ए-बज़्म-ए-ज़मान-ओ-मकाँ हूँ मैं
अमीक़ हनफ़ी
हम कि जो बैठे हुए हैं अपने सर पकड़े हुए
अमीक़ हनफ़ी
अक्सर रात गए तक मैं चौखट पर बैठा रहता हूँ
अमीक़ हनफ़ी
मिरे बदन से कभी आँच इस तरह आए
अमीन राहत चुग़ताई
किसी मकाँ के दरीचे को वा तो होना था
अमीन राहत चुग़ताई
हो सके तो दिल-ए-सद-चाक दिखाया जाए
अमीन राहत चुग़ताई
तिरी निगाह बनी आइना मिरी ख़ातिर
अम्बर वसीम इलाहाबादी
असीर-ए-ख़्वाब नई जुस्तुजू के दर खोलें
अम्बरीन सलाहुद्दीन
मैं ने सोचा है रात-भर तुम को
अंबरीन हसीब अंबर
जाने क्या बरसा था रात चराग़ों से
अम्बर बहराईची
इम्बिसात-ए-अज़ली
अम्बर बहराईची
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