रात Poetry (page 85)
तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है
अरशद अली ख़ान क़लक़
सोते हैं फैल फैल के सारे पलंग पर
अरशद अली ख़ान क़लक़
परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है
अरशद अली ख़ान क़लक़
बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई
अरशद अली ख़ान क़लक़
दीवाली
अर्श मलसियानी
भारत के वीर सिपाही
अर्श मलसियानी
जो गुम-गश्ता है उस की ज़ात क्या है
अरमान नज्मी
गिरते उभरते डूबते धारे से कट गया
अरमान नज्मी
जब सितारों की रिदा काँधे से सरकाती है रात
अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ
दोज़ख़ भी क्या गुमान है जन्नत भी है फ़रेब
आरिफ़ शफ़ीक़
मेरी सोच लरज़ उट्ठी है देख के प्यार का ये आलम
आरिफ़ अब्दुल मतीन
बजा कि कश्ती है पारा पारा थपेड़े तूफ़ाँ के खा रहा हूँ
आरिफ़ अब्दुल मतीन
किसी परिंदे ने उड़ने का मन बनाया है
आराधना प्रसाद
हवस का रंग चढ़ा उस पे और उतर भी गया
अक़ील शादाब
सारे कुश्तों से जुदा ढंग इज़्तिराब-ए-दिल का है
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को
अनवर शऊर
मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक
अनवर शऊर
कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए
अनवर शऊर
यादों के बाग़ से वो हरा-पन नहीं गया
अनवर शऊर
याद करो जब रात हुई थी
अनवर शऊर
उन से तन्हाई में बात होती रही
अनवर शऊर
टूटा तिलिस्म-ए-वक़्त तो क्या देखता हूँ मैं
अनवर शऊर
रही रात उन से मुलाक़ात कम
अनवर शऊर
मुझे ये जुस्तुजू क्यूँ हो कि क्या हूँ और किया था मैं
अनवर शऊर
मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक
अनवर शऊर
कुछ दिनों अपने घर रहा हूँ मैं
अनवर शऊर
कुछ दिन तो कर तआ'वुन ऐ ख़ुश-सिफ़ात मुझ से
अनवर शऊर
काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए
अनवर शऊर
कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए
अनवर शऊर
जो सुनता हूँ कहूँगा मैं जो कहता हूँ सुनूँगा मैं
अनवर शऊर
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